पत्रकारिता के स्तंभ को मजबूत रखने वाले पुरोधा : Ram Kishore Pawar
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- 28 मई 2021
- 5 मिनट पठन

Amit Pathe Pawar | Editor & Founder | Byline Bhopal
पत्रकारिता यूं तो समाजसेवा है। लेकिन आजकल यह कॉर्पोरेट कल्चर में तब्दील हो चुकी है। लेकिन बीते दशकों में पत्रकारिता बकायदा एक मिशन और पैशन दोनों हुआ करती थी। तब ऐसा समय था जब पत्रकारिता में मूलतः सम्मान और समर्पण की भावना मात्र ही विद्मान हुआ करती थी। आज के समय में हम जैसे युवा पत्रकारों के लिए इसमें पैसा और पैशन दोनों मायने रखते हैं। लेकिन एक दौर वो भी रहा है जब तहसील, जिले और ग्राम स्तर पर पत्रकारिता के स्तंभ को मजबूती से संभाल रखने वाले कई पुरोधा पत्रकार हुआ करते थे। जिन्होंने अपनी जवानी से लेकर बुढ़ापा तक पत्रकारिता को निस्वार्थ भाव से समर्पित कर दिया। ऐसे वरिष्ठ पत्रकारों के समाज के प्रति योगदान को शायद रेखांकित किया गया ना ही उपयुक्त कृतज्ञता प्रकट की गई। लेकिन इससे इन पत्रकारों की पत्रकारिता में उत्साह, उमंग और समर्पण में कभी कोई कमी नहीं देखी गई। इन्होंेने हर दौर व मीडिया के बदलते स्वरूप में अपनी पत्रकारिता की अलख जलाई रखी। ऐसे में सभ्य और कृतज्ञ समाज को ऐसे पत्रकारों के प्रति साधुवाद व कृतज्ञता के भाव अवश्य प्रगट करना चाहिए। आज यहां मुझे ऐसा करने का सुअवसर मिल रहा है। और मैं चेष्टा कर रहा हूं कि ऐसे ही एक वरिष्ठ पत्रकार के प्रति यह यथासंभव मामूली का आभार प्रकट कर सकूं। आखिर उनके माध्यम से ही मुझे पहली बार पत्रकार व पत्रकारिता शब्द की जानकारी हुई। उनकी देखादेखी मुझ में पत्रकारिता के शौक का अंकुरण हुआ। आज वो समय है जब मैं ऐसे पत्रकार के प्रति बतौर पत्रकार व एक नागरिक अपनी कृतज्ञता प्रगट करूं। उन्होंने अपनी पत्रकारिता से हमारे समाज और सिस्टम को बेहतर बनाने में अपनी अहम भूमिका भी निभाई है। आपके 57वें जन्म दिवस के अवसर पर हम आपको आभार व्यक्त कर कृतज्ञता प्रगट करते हुए आपकी पत्रकारिता यात्रा का एक सिंहावलोकन करेंगे।
बात उन दिनों की है जब मैं स्कूल में माध्यमिक स्तर की पढ़ाई कर रहा था और दुनियादारी की मेरी प्राथमिक समझ अंकुरित हो रही थी। तब हमारा दायरा काफी छोटा हुआ करता था। जब कुछेक टीवी चैनल्स और लैंडलाइन फोन ही हुआ करते थे। इंटरनेट ना के बराबर ही था। ऐसे में आपका दायरा अपने मोहल्ले, नगर, आपके गांव या ज्यादा से ज्यादा जिले स्तर तक होता था। दुनियादारी की समझ के लिए टीवी और मुख्यतः अखबार ही माध्यम हुआ करते थे। उन दिनों मोहल्ले में नवरात्रि में दुर्गा स्थापना बड़ी ही सामाजिक समरसता के साथ हुआ करता था। उसमें मोहल्ले के वरिष्ठ व्यक्ति सक्रिय भूमिका निभाते थे, युवा कार्यशील रहते थे और हम किशोर अवस्था वाले का काम सारे आयोजन का दर्शन लाभ लेना मात्र हुआ करता था। तब वहां मैं एक इंसान के व्यक्तित्व से काफी प्रभावित हो गया। जो मुखर थे, बेबाक थे और भाषा उनकी मजबूत थी। सभी उनका आदर करते थे और पत्रकार-पत्रकार कहकर सम्मान करते थे। पत्रकार शब्द मैंने पहली बार यहीं से सुना था। उन पत्रकार का नाम है श्री रामकिशोर दयाराम पंवार। तब वे हमारे मोहल्ले में ही रहते थे और नवरात्रि उत्सव के आयोजन में प्रमुख भूमिका में रहते थे। उनके नाम से परिचय होने के बाद उनके पत्रकारिता कर्म भी धीरे-धीरे पढ़ने व देखने को मिलने लगा। 1980 के दशक में कोलनगरी पाथाखेड़ा में जब कोयला माफिया अपने पांव पसारने लगा था तब उन्होंने बेबाक और निर्भीक पत्रकारिता की कोल माफियाओं के बारे में बेधड़क खरी-खरी खबरें छापने का साहस दिखाया। कई बार इसके लिए उनपर प्राणघातक हमले भी हुए। बदलते दौर में उन्होंने स्थानीय केबल नेटवर्क पर अपना लोकल न्यूज चैनल भी शुरू किया। यह एक साप्ताहिक समाचार कार्यक्रम होता था जिसका मुझे बेसब्री से इंतजार हुआ करता था। कोल सिटी हलचल नामक न्यूज कार्यक्रम में पूरे सप्ताह की प्रमुख खबरों का वीडियो पैकेज हुआ करता था जिसे स्वयं रामकिशोर भैया रिपोर्ट व प्रस्तुत करते थे। उन्होंने अपनी पत्रकारिता की शुरुआत अखबार के हॉकर के रूप में शुरू की। कोयलाचंल की आवाज को पत्र संपादक के नाम और आपके पत्र जैसे स्तंभ में समस्याओं को रखते-रखते वे साप्ताहिक बैतूल समाचार से अपनी पत्रकारिता की शुरूआत कर दैनिक भास्कर भोपाल, दैनिक युगधर्म नागपुर और नवभारत नागपुर के कोयलाचंल से संवाददाता भी रहे। उनकी हत्या के प्रयासों के बाद भी वे एक सफल और संघर्षशील पत्रकार के रूप मे सामने आए। प्रदेश की राजधानी भोपाल से निकलने वाले कई प्रमुख समाचार पत्रों के उन्होंने पाथाखेड़ा व सारणी से समाचार सम्प्रेषण करने का काम किया। उन्होंनेे पाथाखेड़ा से प्रेस पर अपना दैनिक समाचार पत्र दैनिक 'पाथाखेड़ा का सपूत' का प्रकाशन भी किया।
समय के साथ उन्होंने करीब आधा दर्जन से अधिक समाचार पत्रों के प्रकाशक व संपादक का दायित्व भी निभाया। साथ ही नागपुर, भोपाल, इन्दौर, जबलपुर, मुम्बई और दिल्ली से प्रकाशित होने वाले कई समाचार पत्रों के लिए बैतूल जिला ब्यूरो प्रमुख के रूप में भी काम किया।
वर्तमान में वे दैनिक पंजाब केसरी दिल्ली के बीते 15 वर्षो से ब्यूरो है। रामकिशोर पंवार की पुस्तक बेतूल पत्रकारिता काफी चर्चित कृति रही। बैतूल जिले के 200 साल पूरा होने पर उनकी पुस्तक बेतूल का संपादन जारी है। अपने गांव से लेकर नदियो पर भी उनकी किताब छप कर आने वाली है।
साप्ताहिक समाचार पत्र ताप्ती हलचल का प्रकाशन एवं संपादन करने वाले रामकिशोर पंवार ने बैतूल जिले में अनेक टीवी न्यूज चैनलो से भी जुड़ कर उन्होने टीवी पत्रकारिता में भी अपना जौहर दिखाया। समाचार प्रेषण करने वाली न्यूज एजेंसी साइना हिन्दुस्तान समाचार से भी जुड़े रहे रामकिशोर पंवार की देश भर में अनेक रहस्य रोमांच से जुड़े सत्यकथायें छप चुकी है। देश की ख्याति प्राप्त पत्रिका कादिम्बनी एवं नवनीत में भी उनके आलेख प्रकाशित हो चुके है। हिन्दी पाक्षिक आऊटलुक से लेकर दैनिक ट्रिब्यून में उनकी कहानी छप चुकी है।
पत्रकारों को संगठित व आंदोलित किया
रामकिशोर जी ने जिले के पत्रकारों को संगठित कर उनका संगठन बनाने में भी अहम भूमिका निभाई। भोपाल के पत्रकार कामरेड शलभ भदौरिया एवं कामरेड जगत पाठक के नेतृत्व में उन्होंे बैतूल व छिन्दवाड़ा में पत्रकार संगठन की नींव रखी। लम्बे समय तक कामरेड के विक्रमराव के संग पत्रकार आन्दोलनों से जुड़े रहे रामकिशोर पंवार ने देश के ख्याति प्राप्त पत्रकार एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पत्रकार एवं सासंद रामाराव की स्मृति में आयोजित सेवाग्राम से राजघाट तक की पत्रकारो की एतिहासिक सदभावना यात्रा का सावनेर से लेकर भोपाल तक नेतृत्व किया। श्री पंवार ने मध्यप्रदेश के अनेक संगठनो के संग काम किया वे बैतूल जिले में जिला प्रेस क्लब के उपाध्यक्ष से लेकर एक दर्जन से अधिक पत्रकार संगठनो के जिलाध्यक्ष/ ्रदेश सचिव एवं राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य भी रहे। वर्तमान में आईएफडब्लयूजे के परमानंद पाण्डे गुट में प्रदेश सचिव एवं नेशनल सदस्य है।
मैं एक छोटे से गांव से चला था अनजान शहर की ओर। मंजिल कोयलांचल पाथाखेड़ा थी लेकिन गांव की पहचान बनाने के लिए उसे देश-प्रदेश के समाचार पत्रों व पत्रिका में गाँव को लेकर खूब लिखा। आज वापस गांव के करीब हूं, इस उम्मीद के साथ मैं अब रामकिशोर रोंढावाला के नाम को सार्थक कर सकूं। जीवन की आखरी शाम गांव की हो और गोदी हो पूण्य सलीला मां सूर्यपुत्री ताप्ती की अंतिम सांस के समय जननी उस समय भले न हो जन्मभूमि करीब हो यही कामना करता हूं। - Ramkishore Dayaram Pawar Rondhawala
समाज व प्रकृति की सेवा भी कर रहें
बीते लगभग डेढ़ दशक से पुण्य सलिला माँ सूर्यपुत्री ताप्ती जागृति समिति एवं माँ ताप्ती जागृति मंच के बैनर तले वे ताप्ती के जल संरक्षण/संर्वधन/ताप्ती घाटी परियोजना और ताप्ती विकास प्राद्यिकरण को लेकर संघर्षरत है। प्रदेश में उनकी पहचान पुण्य सलिला ताप्ती को लेकर जारी संघर्ष को लेकर बनी हुई है। ताप्ती जन्मोत्सव से लेकर ताप्ती महोत्सव और अब ताप्ती नदी के दोनों किनारो पर परिक्रमा मार्ग एवं घाटों के निमार्ण का संकल्प लेकर चल रहे हैं। कोरोना महामारी के दौर में रामकिशोर पंवार ने अपना जन्मोत्सव आयोजन पर सेवा-परोपकार के रूप में मनाने का संकल्प लिया है।
(Amit is a Journalist and Graphic Designer. He worked with The Times of India, Navbharat Times, Navdunia, Peoples Samachar, Patrika & Dainik Bhaskar.)
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