।। ऊँ श्री चिंतामन गणेशाय नम: ।।
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- Aug 23, 2020
- 3 min read
Updated: Oct 29, 2020
भोपाल से 30 किमी दूर सिहोर स्थित श्री चिंतामन सिद्ध गणेश मंदिर में गणेश जी व रिद्धी-सिद्धी माता की मूर्ति, जहां उल्टा स्वास्तिक बनाने से पूरी होती हैं मनोकामनाएं Sheetal Atkade Pathe । Byline Bhopal। Mobile# 7067730336 All Photos Credit: Amit Pathe
भगवान गणेश विघ्नहर्ता हैं, विद्यादाता हैं, धन-संपत्ति देने वाले हैं। कहते हैं जहां बुद्धि और विवेक हो, वहां अमंगल नहीं होता। गणेश बुद्धि और ज्ञान के देवता है। इसलिए, जहां मंगल की कामना हो वहां पहले गणपति को बुलाया जाता है। गणेश आते ही विघ्नों का नाश करते हैं। इस तरह गौरीपुत्र गणपति जीवन की हर परेशानी को दूर करने वाले हैं। उनकी उपासना मात्र से आपके सब कष्टों का निवारण हो जाता है। प्रथम पूज्य भगवान गणपति की महिमा वैसे तो किसी से भी छिपी नहीं है, लेकिन कई बार हमें इसके साक्षात उदाहरण ही देखने मिल जाते हैं। गणपति बप्पा अपने जितने भी रूपों में जहां भी दर्शन दें, भक्त को उसका लाभ ही होता है। बप्पा के प्रत्येक रूप का अपना अलग ही महत्व है। फिर चाहे वह उज्जैन की देवी गढ़कालिका मंदिर से जुड़ा हुआ स्थिरमन गणेश हों या चिंतामण गणेश। सिहोर का चिंतामण गणेश एक ऐसा मंदिर है जिसकी महिमा और कथा सबसे निराली है। कहा जाता है कि भगवान गणपति आज भी यहां साक्षात मूर्ति रूप में निवास करते हैं। साथ ही यह मान्यता है कि बप्पा को यहां सच्चे मन से पूजने वाले कि हर मनोकामना बप्पा पूरी करते हैं। यही कारण है िक यहां गणेश उत्सव के अतिरिक्त भी सालभर भक्तों की भीड़ लगी रहती है।

सम्राट विक्रमादित्य ने बनाया
2000 वर्ष पूर्व उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य (परमार वंश के राजा) ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। मंदिर में स्थापित श्रीगणेश जी की मूर्ति खड़ी हुई है। मूर्ति जमीन के अंदर आधी धंसी हुई है, इसलिए आधी मूर्ति के ही दर्शन होते हैं। यह एक स्वयंभू प्रतिमा है जिसका निर्माण विक्रम संवत् 155 में श्रीयंत्र के अनुरूप करवाया गया था। इस मंदिर को लेकर एक कथा भी प्रचलित है जो कि राजा विक्रमादित्य से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि विक्रमादित्य के पूजन से प्रसन्न होकर भगवान गणपति ने उन्हें दर्शन दिए और मूर्ति रूप में स्वयं ही यहां स्थापित हो गए । यह प्रचलित कथा कुछ इस प्रकार हैः एक बार राजा विक्रमादित्य के सपने में भगवान गणपति आए और उन्होंने पार्वती नदी के तट पर पुष्प रूप में अपनी मूर्ति होने की बात बताते हुए उसे लाकर स्थापित करने का आदेश दिया। राजा विक्रमादित्य ने वैसा ही किया। पार्वती नदी के तट पर उन्हें वह पुष्प भी मिल गया और उसे रथ पर अपने साथ लेकर वह राज्य की ओर लौट पड़े। रास्ते में रात हो गई और अचानक वह पुष्प गिर पड़ा और गणपति की मूर्ति में परिवर्तित होकर वहीं जमीन में धंस गया। राजा के साथ आए अंगरक्षकों ने जंजीर से रथ को बांधकर मूर्ति को जमीन से निकालने की बहुत कोशिश की पर मूर्ति निकली नहीं। तब विक्रमादित्य ने गणपति की मूर्ति वहीं स्थापित कर इस मंदिर का निर्माण कराया।
हर चिंता से मुिक्त दिलाते बप्पा
स्थानीय लोग ऐसा भी बताते हैं कि जब भी विक्रमादित्य संकट में होते या कोई चिंता उन्हें परेशान करती तो वे बप्पा की शरण में यहां आते थे और उन्हें अपनी समस्या का समाधान मिलने में ज्यादा देर नहीं लगती थी। ऐसी मान्यता के चलते भी लोग यहां अपनी समस्याओं को लेकर आते हैं और बप्पा से अपनी चिंता दूर करने की मन्नत मांगते हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि इन दिनों में गणपति के समक्ष कोई भी चिंता व्यक्त की जाए उसका समाधान अवश्य ही होता है।
उल्टा स्वास्तिक बनाने से होती हैं मनोकामना पूरी
यहां हर माह गणेश चतुर्थी पर भंडारा करने की प्रथा है। स्थानीय लोगों के अनुसार 60 साल पहले यहां प्लेग की बीमारी फैली थी। तब इसी मंदिर में लोगों ने इसके ठीक होने की प्रार्थना की और प्लेग के खत्म हो जाने पर गणेश चतुर्थी मनाए जाने की मन्नत रखी। प्लेग ठीक हो गया और तब से हर माह गणेश चतुर्थी पर भंडारे की यह प्रथा चली आ रही है। यहां आने वाले श्रद्धालु मंदिर के पिछले हिस्से में उल्टा स्वास्तिक बनाकर मन्नत मानते हैं और पूरी हो जाने पर दोबारा आकर उसे फिर सीधा बनाते हैं।
- ज्योतिषार्य पं. पृथ्वीवल्लभ दुबे, पुजारी एवं प्रबंधक- चिंतामन सिद्ध गणेश मंदिर, सिहोर (नगर पुरोहित सिहोर (मप्र), सदस्य अखिल भारतीय निर्णायक मंडल ज्योतिष संघ)
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(Sheetal is a Journalist Mobilographer & the Owner of Byline Bhopal)
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