।। नमो मां ताप्ती आदिगंगे ।।
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- Nov 20, 2021
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Amit Pathe Pawar | Byline Betul | Mobile#8130877024 | @amitpathe
मां गंगा में स्नान, नर्मदा के ध्यान व यमुना के आचमन से जो पुण्य लाभ मिलता है, वह मां ताप्ती के स्मरण मात्र से मिल जाता है... मां ताप्ती (तापी) के उदगम् के कारण ही इस नगर का नाम मुलतापी पड़ा। मुलतापी (मुलताई) को सांस्कृतिक नगरी व पवित्र नगरी कहलाने का श्रेय ताप्ती नदी के कारण मिला है। भारत के सभी तीर्थों में ताप्ती उदगम् का अपना अलग महत्व है। नदियों किनारे संस्कृति का जन्म होता है और नदियों से ही सभ्यता फलती-फूलती हैं। नदियों से लोगों का हमेशा लगाव रहा हैं, प्रकृति की अनुकूलता के कारण लोग नदियों के किनारे आकर्षित हुए हैं। नदियां सबको जीवन प्रदान करती है, इसलिए नदियों को अमृतदायिनी व जीवनदायिनी माना जाता है। मुलताई में ताप्ती जी का महत्व समझते हुए, यहां पर प्राचीन समय में भारत के ऋषि-मुनि और मनीषियों ने इसे अपनी कर्मस्थली बनाया। यहां रहकर जप-तप किया।

धर्म परंपरा के अनुसारकृत युग में ब्रम्हाजी ने, नेत्रा युग में दशरथ नंदन श्री राम ने, द्वापर युग में श्री कृष्ण ने ताप्ती माँ की सेवा की।

वहीं, ताप्ती जी की आराधना करके अपने को श्राप से मुक्ति पाई। मां ताप्ती को को सूर्य पुत्री होने का सौभाग्य मिला। यमराज, शनिदेव एवं मां यमुना उनके भाई-बहन होने के कारण इनका बहुत ही महत्व है। मोक्ष प्रदान करने वाली सूर्य पुत्री मां ताप्ती की आयु पृथ्वी की आयु के बराबर मानी जाती है। दक्खन और विंध्य प्लेट के संगम पर सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला की तलहटी से लगकर मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र एवं गुजरात में युगो से बहती चली आ रही हैं, हमारी ताप्ती माँं। इनके जल में हड्डी एवं बाल तक घुल मिल जाते हैं। इसमें स्नान करने से कुष्ठ एवं चर्म रोग से मुक्ति मिलती है। उनकी महिमा आम जनता तक पहुंचे इसी आशा और विश्वास के साथ हमारा यह छोटा सा प्रयास जिससे हम मां ताप्ती के महत्व को जाने और पीढ़ियों से हमारा लालन, पालन पोषण करने वाली सूर्यपुत्री आदि गंगा मां ताप्ती से जुड़े तीर्थ स्थल, जंगल, भूगर्भ, पर्वत, जैव विविधता, कृषि, जल, गुणात्मकता, नदी, परंपरा, आस्था एंव संस्कृति से हम परिचित हो सकें,यही परिचय माँ ताप्ती के संरक्षण और संवर्धन में आने वाले समय में महत्त्वपूर्ण होगा।
भारत की सबसे लम्बी नदियों में से एक है ताप्ती का सफर
सूर्यपुत्री मां ताप्ती भारत की पश्चिम दिशा में बहने वाली प्रमुख दो नदियों में से एक है। यह नाम ताप यानी उष्ण गर्मी से उत्पन्न हुआ है। वैसे भी ताप्ती ताप-पाप-श्राप और त्रास को हरने वाली आदीगंगा कही जाती है। भगवान सूर्यनारायण ने स्वंय के ताप को कम करने के लिए ताप्ती को धरती पर भेजा था। यह सतपुड़ा पठार पर स्थित मुलताई के तालाब से उत्पन्न हुई है लेकिन इसका मुख्य जलस्त्रोत मुलताई के उत्तर में 21 अंक्षाश 48 अक्षंाश पूर्व में 78 अंक्षाश एवं 48 अंक्षाश में स्थित 790 मीटर ऊंची पहाड़ी है जिसे प्राचीनकाल में ऋषिगिरी पर्वत कहा जाता था जो बाद में नारद टेकड़ी कहा जाने लगा। उस स्थान पर स्वंय ऋषि नारद ने घोर तपस्या की थी तभी उन्हें ताप्ती पुराण चोरी करने के बाद उत्पन्न कोढ़ से मुक्ति का मार्ग ताप्ती नदी नदी में स्नान का महत्व बताया गया था।

मुलताई का नारद कुण्ड वही स्थान है जहां पर नारद को स्नान के बाद कोढ़ से मुक्ति मिली थी। ताप्ती नदी सतपुड़ा की पहाड़ियों एवं चिखलदरा की घाटियों को चीरती हुई बहती है। 201 किलोमीटर अपने मुख्य जलस्त्रोत से बहने के बाद ताप्ती पूर्वी निमाड़ में पहुंचती है। पूर्वी निमाड़ में भी 48 किलोमीटर सकरी घाटियों का सीना चीरती ताप्ती 242 किलोमीटर का सकरा रास्ता खानदेश का तय करने के बाद 129 किलोमीटर पहाड़ी जंगली रास्तो से कच्छ क्षेत्र में प्रवेश करती है। लगभग 701 किलोमीटर लम्बी ताप्ती नदी में सैकड़ों कुण्ड एवं जल प्रताप के साथ डोह है जिसकी लम्बी खाट में बुनी जाने वाली रस्सी को डालने के बाद भी नापी नहीं जा सकी है। मुलताई नगर स्थित तालाब से निकल कर समीप के गौ मुख से एक सूक्ष्म धार के रूप में बहती हुई गुजरात राज्य के सूरत के पास अरब सागर में समाहित हो जाती है।

श्री ताप्ती अवतरण के बाद ही सौर मंडल का निर्माण हुआ। शास्त्रों में उल्लेख मिलता हैं कि यदि भूलवश अनजाने से किसी मृत देह की हड्डी ताप्ती जल में प्रवाहित हो जाती हैं तो उस मृत आत्मा को मुक्ति मिल जाती हैं। कहते हैं कि ताप्ती नदी में बहते जल के बिना किसी विधि विधान के यदि कोई भी व्यक्ति मृत अतृप्त आत्मा को आमंत्रित करके उसे अपने दोनो हाथो में जल लेकर उसकी शांति और तृप्ति का संकल्प लेकर यदि उसे बहते जल में प्रवाहित कर देता हैं तो मृत व्यक्ति की आत्मा को मुक्ति मिल जाती हैं ।
नारद जी को ताप्ती से मिली श्राप से मुक्ति, यहां की तपस्या
नारद जी को ब्रह्मा जी का मानस पुत्र माना जाता है। नारद जी को तीनों लोकों में घटित घटनाओं का ज्ञान होने के कारण वे सभी लोकों में समान रूप से पूजनीय है। वे देवता, दानव व मानव तीनों में पूजनीय व लोकप्रिय हैं। एक किवंदंती के अनुसार नारद जी द्वारा जब गंगा जी का मान बढ़ाने के लिए पृथ्वी लोक से सभी ताप्ती पुराण वापस बुलाने के प्रयोजन में मुख्य भूमिका निभायी, तो मां ताप्ती के श्राप के कारण उन्हें गलित कोढ़ हो गया। वे देवादिदेव ब्रह्मा, विष्णु व महेश की शरण में गये तो उन्होंने इसकी मुक्ति का उपाय यह बताया कि आपको श्राप से केवल सूर्यपुत्री ताप्ती ही मुक्त कर सकती है। जब नारदजी ने मां ताप्ती की आराधना की। तब मां ताप्ती ने कहा कि आप यदि मेरे जल में स्नान करेंगे तो आप का कोढ़ दूर हो जायेगा। तब नारद जी ने मां ताप्ती उदगम् के किनारे ध्यान व स्नान किया। मुलतापी में जहां नारदजी ने तपस्या की थी, वह स्थान आज भी नारद टेकड़ी के नाम से जाना जाता है।
सूर्यपुत्री ताप्ती का अवतरण
माँ ताप्ती के अवतरण को लेकर पुराणों में एक रोचक कथा है।माँ ताप्ती की पौराणिक कथाओं का उल्लेख धर्मग्रंथों में मिलता है। ताप्ती जी के जन्म के बारे में पुराणों में एक रोचक कथा है कि जब प्रलय हुआ तो सारे सृस्टि के जीव ब्रम्हा जी में विलीन हो गए। जब उन्होंने पुनः सृस्टि के निर्माण का विचार किया तो वे कुछ व्याकुल हो उठे। उन्होंने भगवान सूर्य का ध्यान किया तो भगवान सूर्य वहां उपस्थित हुए। लेकिन ब्रह्मा जी की व्याकुलता से वो भी चिंतित हो उठे। अतः उन्होंने अपनी पुत्री ताप्ती का ध्यान किया। सूर्यपुत्री ताप्ती उनके पसीने से उत्पन्न होकर सारी दिशाओं एवं आकाश को आलोकित करते हुए पिता का संताप दूर करते हुए भूलोक पर प्रकट हुई। इस तरह सृस्टि के निर्माण के समय प्रथम नदी के रूप में ताप्ती जी का अवतरण हुआ। मां ताप्ती का जन्म आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दोपरह में हुआ था. सूर्य भगवान ने अपने तेज़ से ताप उत्पन्न करके ताप्ती जी को अवतरित किया था। इसीलिए सूर्यपुत्री का नाम ताप्ती हुआ। ताप्ती जी को पुराणों में कहीं तप्ती तो कहीं तापी करके भी उल्लेखित किया गया है। महाभारत, भविष्यश्यपुरण, स्कन्दपुराण, मत्स्यपुराण आदि पुराणों में उनका वर्णन मिलता।
देवों का प्रिय स्थान पुण्य सलिला माँ ताप्ती का उद्गम स्थल
ताप्ती के उद्गम के कारण इस नगर का नाम मुलतापी पड़ा। मुलतापी को सास्कृतिक व पवित्र नगरी कहलाने का श्रेय ताप्ती नदी के कारण मिला है। भारत के सभी तीर्थों में ताप्ती नदी का अपना अलग महत्व है। नदियों किनारे संस्कृति का जन्म होता है और नदियों से ही सभ्यता फलती फूलती है। नदियों से लोगों का हमेशा लगाव रहा है। प्रकृति के अनुकुलता के कारण लोग हमेशा से ही नदियों के किनारे आकर्षित रहे हैं। नदियां सभी को जीवन प्रदान करती है। इसीलिए नदियों को जीवनदायिनी और अमृत दायिनी माना जाता है। मुतलाई में प्राचीन समय में ताप्ती नदी का महत्व समझते हुए यहां पर प्राचीन समय मे भारत के ऋषि मुनियों और मनीषियों ने इसे अपनी कर्मस्थली बनाया और यहां रहकर जप एवं तप किया तथा ताप्ती जी की आराधना करके खुद को श्राप से मुक्ति दिलाई।
कार्तिक पूर्णिमा पर माँ ताप्ती में दीपदान एवं स्नान का महत्व
कार्तिक पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी में स्नान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है. कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि सबसे अधिक धार्मिक और आध्यात्मिक होती है. इस दिन स्नान-दान का खास महत्व होता है. कार्तिक मास के स्नान को महापुण्य माना जाता है. लेकिन पूर्णिमा के दिन नदी में स्नान करने ज्यादा महत्व होता है.कार्तिक मास में इंद्रियों पर संयम रखकर चांद-तारों की मौजूदगी में सूर्योदय से पूर्व ही पुण्य प्राप्ति के लिए नित्य स्नान करना चाहिए। कार्तिक पूर्णिमा पर सूर्योदय से पूर्व उठकर तारों की छाया में स्नान करके भगवान विष्णु और तुलसी का विधि-विधान से पूजन कर लेने से पूरे कार्तिक स्नान का फल मिल जाता है।
(Amit is a Journalist and Graphic Designer. Worked with
The Times of India, Navbharat Times, Patrika & Dainik Bhaskar.)
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