छठ महापर्व का दूसरा दिन खरना है मन की स्वच्छता पर है केंद्रित...
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- Nov 9, 2021
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लोक आस्था के महापर्व छठ का आज दूसरा दिन है. आज के दिन को खरना के नाम से जाना जाता है. वहीं, कल यानी तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य की पूजा और चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने साथ ही यह पर्व संपन्न हो जाएगा. सूर्योपासना के इस पवित्र चार दिवसीय महापर्व के पहले दिन छठव्रती श्रद्धालु नर-नारियों ने अंत:करण की शुद्धि के पहले दिन नहाय खाय (Nahay Khay) किया और आज खरना होगा. आज खरना और पूजा से पहले हम आपको बताएंगे कि खरना का क्या महत्व और इसकी पूजन विधि क्या है. साथ ही यह भी बताएंगे कि आज के दिन प्रसाद (Kharna Prasad) में क्या बनाया जाता है.

क्या है खरना का महत्व?
आज व्रती सूर्योदय से सूर्यास्त तक एक कठिन निर्जला व्रत करेंगे. इस व्रत में नमक और चीनी का प्रयोग वर्जित है और प्रसाद के लिए गुड़ की खीर बनती है. वही प्रसाद के रूप में वितरित की जाती है. इसे खरना कहा जाता है. कार्तिक शुक्ल पंचमी को यह व्रत रखा जाता है. आज के दिन प्रसाद के रूप में रोटी और खीर ग्रहण करने की ही परंपरा है. छठ पर्व का दूसरा दिन खरना होता है। खरना का मतलब है शुद्धिकरण। छठ के व्रत में सफाई और स्वच्छता का बहुत महत्व है। पहले दिन नहाय-खाय जहां तन की स्वच्छता करता है, वहीं दूसरे दिन खरना में मन की स्वच्छता पर जोर दिया जाता है। इसके बाद छठ के मूल पर्व षष्ठी का पूजन होता है और भगवान सूर्य को अर्घ्य दे कर उनका आवहन किया जाता है। खरना के दिन तन मन से शुद्ध हो कर छठी मैय्या का प्रसाद बनाया जाता है।

खरना के दिन का प्रसाद
ऐसे तो खरना के दिन मुख्य रूप से गुड़ की खीर और रोटी ही प्रसाद में बनता है. हालांकि इसके अलावा खरना की पूजा में मूली और केला भी रखकर पूजा की जाती है. छठ व्रती प्रसाद में केला और मूली खाते भी हैं. भोग लगाने के बाद ही प्रसाद को व्रती ग्रहण करते हैं और जब तक चांद नजर आए तब तक पानी पीते हैं. इसके बाद से उनका करीब 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू होता है. लोक आस्था के इस महापर्व के तीसरे दिन व्रतधारी अस्ताचलगामी (डूबते हुए) सूर्य को नदी और तालाब में खड़े होकर प्रथम अर्घ्य अर्पित करते हैं.
खरना की पूजन विधि
नहाय-खाय के दिन पवित्र नदिय या तलाब में नहाने के बाद चने की दाल, लौकी की सब्जी आदि खा कर पूरे दिन निर्जल व्रत रखा जाता है। इसके बाद खरना के दिन शाम के समय सूर्य देवता और छठी मैय्या का पूजन करने के बाद गुड़ और चावल की खीर बनाई जाती है। इसके साथ आटे की रोटी भी बनाते हैं। ये खाना मिट्टी के नये चूल्हे पर आम की लकड़ी से बनाया जाता है। खरना के दिन भगवान को भोग लगाने के बाद सबसे पहले व्रती प्रसाद ग्रहण करता है। इस प्रसाद को ग्रहण करने बाद 36 घंटे का निर्जल व्रत शुरू हो जाता है। जो कि सप्तमी के दिन उगते सूर्य के अर्घ्य के साथ समाप्त होता है। इस दिन ही षष्ठी का प्रसाद बनाया जाता है।
9 नवंबर को खरना- खरना छठ पूजा का दूसरा दिन होता है. यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को होता है. इस दिन सूर्योदय 6 बजकर 03 मिनट पर और सूर्यास्त 5 बजकर 04 मिनट पर होगा.
10 नवंबर को डूबते सूर्य को अर्घ्य- इस दिन ही छठ पूजा होती है. इस दिन शाम को सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. इस दिन सूर्यादय 6 बजकर 03 मिनट पर और सूर्यास्त 5 बजकर 03 मिनट पर होगा.
11 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य- छठ पूजा का अंतिम दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि होती है. इस दिन सूर्योदय के समय सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित किया जाता है. उसके बाद पारण कर व्रत को पूरा किया जाता है. इस दिन सूर्योदय 6 बजकर 04 मिनट पर और सूर्यास्त 5 बजकर 03 मिनट पर होगा.
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