सात्विक जीवन की मिसाल सुरेन्द्र सिंह तोमर
- Byline
- Aug 19, 2020
- 3 min read
सुरेन्द्र सिंह जी ने हमें हमेशा प्रेरित किया है कि सच्चाई, ईमानदारी, सुचरित्र और खुद्दारी के साथ जीवन कैसे जिया जा सकता है
सरफ़रोशी की तम्मना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है...

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सरफ़रोशी की तम्मना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है।
श हीद रामप्रसाद बिस्मिल जी द्वारा लिखे गए इन शब्दों को यथार्थ में जिया है आदरणीय सुरेन्द्र सिंह तोमर ने। महज 10 वर्ष की आयु में पिता को खो देने के बाद, अपने बचपन को भुलाकर एक जिम्मेदार इंसान बनने की कहानी शुरू हुई। पारिवारिक जिम्मेदारी बखूबी निभाने के साथ-साथ सामाजिक कर्तव्य का भी पालन बखूबी किया। 25 साल पहले क्षत्रिय महासभा को एक कार्यकर्ता के रूप में जॉइन किया। उद्देश्य सिर्फ समाज में फैल रही कुरीतियों को दूर करना था। दहेज प्रथा, मृत्यु भोज, व्यसन के कारण युवाओं का बर्बादी के रास्ते पे जाना या ग्वालियर शहर में दिन दहाड़े हत्या हो, सुरेन्द्र सिंह जी ने सभी के खिलाफ जमकर आवाज उठाई और समाज-सुधार का काम किया। सुरेन्द्र सिंह जी ने मृत्यु भोज का सबसे पहला बहिष्कार स्वयं अपने माताजी के दिवंगत होने पर इसकी शुरुआत की। जब शहर में जाति के आधार पर समाज के चित-परिचित लोगों की हत्या हो रही थी, तब सुरेन्द्र सिंह जी ने अन्य समाजसेवियों के साथ मिलकर दशहरा चल–समारोह की शुरुआत की । इसका मकसद सिर्फ लोगों तक यह संदेश पहुंचाना था कि एकता में कितनी शक्ति है।
सुरेन्द्र सिंह जी ने गांव के लोगों को उनके कर्तव्यों और शक्ति का एहसास दिलाने के लिए बहुत सारी पद यात्राएं कीं। इसका असर यह हुआ कि लोग आगे आए, बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और समाज में एकता का संदेश फैला। इन सबसे हटकर सुरेन्द्र सिंह जी को पर्यावरण से एक अलग ही लगाव है। वह हमेशा पर्यावरण और प्रकृति के नज़दीक रहते हैं। उन्होंने अलग-अलग जगह अब तक के जीवन में हजारों पेड़ लगाए हैं। इसका उद्देश्य फोटो खिंचवाना नहीं सिर्फ प्रकृति और पर्यावरण को बचाना था। समाज और पर्यावरण को बचाने में उन्हें अनेक कठिनाईयों का सामना भी करना पड़ा।
गांव में पानी की समस्या दूर करने के लिए स्टॉप डैम बनवाने के लिए आंदोलन किए। आखिर सरकार ने उनकी बात सुनी और मुरैना के कई गांव में स्टॉप डैम बने। महिला शक्ति को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने क्षत्रिय महासभा में महिला विंग की शुरुआत की। समाज में एकता की अलख जगाने में कभी पीछे नहीं रहे, फिर उसके लिए चाहे जान पर क्यों न बन जाए। समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने की लगन भी ऐसी कि प्रदेश तो छोड़ो, देश के हर कोने में जाकर अलख जगाई। उत्तर प्रदेश के जालौन जिले का किस्सा समाज के लगभग सभी लोग जानते हैं। जालौन कांड एक बहुत वीभत्स घटना थी। जिसमें समाज के लोगों को दशहरा मनाने से मना किया गया, चूंकि वहां मायावती की सरकार थी। इस कार्यक्रम में सुरेन्द्र सिंह जी को विशेष अतिथि के तौर पर बुलाया गया था। सुरेन्द्र सिंह जी अपने 200 लोगों के साथ उत्तर प्रदेश पहुंचे और दशहरा-पर्व मनाने का आगाज कर दिया।
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के अध्यक्ष आदरणीय शिवराम सिंह गौर जी ने जब अपने परिवार सहित गिरफ्तारी दी। तब सुरेन्द्र सिंह जी ने मार्च निकालने की कोशिश की। लेकिन उस दशहरा पर्व पर निंदनीय और दुर्भाग्यपूर्ण बात यह रही कि मायावती सरकार के इशारे पर पुलिस ने बर्बरता पूर्ण व्यवहार करते हुए दशहरा नहीं मनाने दिया, सब पर लाठियां बरसाई। पकड़ कर गुनाहगारों की तरह जेल में ठूंस दिया गया। इसके चलते सुरेन्द्र सिंह तोमर जी को अपनी सरकारी नौकरी में सस्पेंड रहना पड़ा। फ्रेक्चर हुआ और जीवन भर के लिए कमर-दर्द मुफ्त भेंट में मिला ।
सुरेन्द्र सिंह जी को कई बार झूठे लोगों का भी सामना करना पड़ा। लोग समाज के नाम पर उनसे जुड़े और अपना उल्लू सीधा करने की कोशिश की। आगे बढ़ने का प्रयास किया। लेकिन ऐसे लोग ज्यादा दिन तक समाजसेवी होने का ढोंग न कर सके और अपने रास्ते बदल कर चले गए। ऐसे लोगों ने बहुत कोशिश की कीचड़ उछालने की, झूठी अफवाहें फैलाने की, लेकिन सांच को आंच क्या।
सुरेन्द्र सिंह जी ने सात्विक जीवन जी कर हमें हमेशा प्रेरित किया है कि सच्चाई, ईमानदारी, सुचरित्र और खुद्दारी के साथ जीवन कैसे जिया जा सकता।
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