ज़िंदादिली बनाम एंटीबॉडी
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- May 28, 2021
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लम्बी आयु एवं स्वस्थ जीवन की अचूक “वैक्सीन” – ज़िंदादिली

Byline Column by: Ritesh Sharma(MG)
जि़ंदगी ज़िंदा-दिली का नाम है,
मुर्दा-दिल ख़ाक जिया करते हैं!
मशहूर शायर -इमाम बख्श नासिख़ का ये शेर आज के इन हालातों पर वाक़ई बहुत ही मौज़ू सा लगता है।
आज जब कोरोना के मनहूस सायें ने इंसान की खुशियों पर ग्रहण लगा दिया है, ऐसे में ये शेर हम सभी को जीने की राह दिखाता है।
संक्रमण की इन काली बदलियों में जहां चारों ओर मौत का तांडव मंडरा रहा हो। हर घर इस महामारी की शिकस्त की दहशत में हो और अज्ञात शिकारी भी अदृश्य हो तो ऐसे दौर में हर शख्स मानसिक रूप से ग़मगीन होकर अवसाद में चला जा रहा है।
हर एक शख्स सिर्फ ज़िंदा रहने व सेहतमंद रहने की हर कोशिश में लगा हुआ है। डॉक्टरों के द्वारा दी जा रही वैक्सीन और दवाईयां यहां तक कि अनेकानेक दी जा रही नसीहतें व नुस्खों पर अमल कर रहा है। हर कोई अपनी अपने भीतर एंटीबॉडी तैयार कर इम्यून सिस्टम मज़बूत करने में लगा है और इसी के प्रयास में गाहे-बगाहे श्रम के अलावा कई बार बेवजह धन भी गवां रहा है।
पर हम यहां एक बात भूल रहे है कि विज्ञान और प्रकृति ने हमें अनेक तोहफ़े भी बक्शे है जिनकी मदद से हम स्वयं को और अपने साथ रहने वाले हर इंसान को स्वस्थ रख सकते है और उससे अपने अंदर एंटीबॉडी तैयार कर अपने इम्यून सिस्टम को मजबूत कर सकते हैं। हां, और वो है आपके भीतर की "ज़िंदा-दिली' यानी कि हर हाल में खुश रह कर औरों को भी खुश रखने का हुनर !
जिंदगी जो बची है उसे अपनों के लिए बचा के रखें, जाने वाला अपनी तय की हुई जिंदगी जी कर चला जायेगा, उसका अफसोस करने से क्या हासिल होगा?
“ज़िंदा-दिली” से तात्पर्य है अपने ऊपर बेज़रूरी ओढ़े हुए सख़्त लबादे को हटा कर भीतर की "खुशमिजाज़" शख्सियत को बाहर लाएं और ये ख़ुशमिज़ाजी अपनों में बांट कर खुद की और औरों में एंटीबॉडी तैयार करें। वैक्सीन का असर तो चंद महीनों तक ही रहेगा, पर यक़ीन मानिए आपकी ये ख़ुशमिजाज़ तबीयत का असर ताउम्र आपको स्वस्थ रखेगा और आपके इम्यून सिस्टम को बढ़ाने में कारगर नुस्खा सिद्ध होगा।
अक्सर देखा गया है कि बहुत ज्यादा संजीदगी, गंभीरता, अल्पभाषी होना, एकाकीपन और लोगों से दूरियां बनाकर रहने का स्वभाव तमाम बीमारियों का घर बना लेती हैं। इन हालातों में दवाएं भी अपना असर कम ही दिखा पाती हैं। ये सब आपके अंदर के नैराश्य, अवसाद को बढ़ाकर आत्मविश्वास को भी डगमगा देता है। इस तरह आपके आसपास नकारात्मक ऊर्जा का वातावरण बनने लगते है। आप चिड़चिड़े स्वभाव के हो जाते है, जिससे अनजाने में या तो आप लोगों से दूरी बना लेते या लोग आपसे दूर हो जाते है। ये हालात अवसाद पैदा करते है जो कि बेहद हानिकारक है। इसके विपरीत आप यदि एक जिंदा-दिल इंसान बने रहें, खूब हंसते-हंसातें रहें, हर लम्हे का आनंद उठाते रहें, मस्ती से जिंदगीं का लुत्फ़ लेते रहें, तो आप के चारों तरफ सकारात्मक ऊर्जा का वातावरण बनेगा और आप स्वयं को तो स्वस्थ-मस्त रख पायेगें ही और साथ ही आप औरों को भी स्वस्थ जीवन की प्रेरणा देने में अपनी सार्थक भूमिका निभा पाएगें ।
यह तथ्य वैज्ञानिक शोध से भी सिद्ध हुआ है और विज्ञान ने भी माना है कि चेहरे की मुस्कराहट मात्र से अपने चारों ओर बहुत ही पॉजिटिव एनर्जी निर्मित हो जाती है। गमग़ीन माहौल भी बदल कर, खुशनुमा हो उठता है। जो आपको मुस्कुराता हुआ देखता है वो भी अच्छा और सहज महसूस करता है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि हंसी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति पर अपना असर दिखाती है। एक व्यक्ति हंसता है तो उसे देखकर दूसरा भी हंसने लगता है, हंसने में शरीर की 12 मांसपेशियां और क्रोध में 34 मांसपेशियां कार्य करती है।
मनोरोग विशेषज्ञ भी कहते हैं कि तनाव की वजह से शरीर में रक्त संचरण 35 प्रतिशत बढ़ जाता है। लगातार हंसने से शरीर में ज्यादा मात्रा में ऑक्सीजन पहुंचने से हार्ट पंपिंग रेट बढ़ता है और ब्लड सर्कुलेशन अच्छी तरह होता है, जो क्रोध, घबराहट और तनाव को दूर करता है। जिसका मन चिड़चिड़ा रहता है या जो क्रोध, घबराहट और तनाव में जीते हैं उन्हें ये सब भुलाकर ज्यादा से ज्यादा हंसना चाहिए। रिसर्च में पाया गया है कि तनाव की वजह से शरीर में रक्त संचरण 35 फीसदी धीमा हो जाता है। वहीं, हंसी के चलते 20 फीसदी बढ़ जाता है।
एक अध्ययन बताता है कि मस्त रहने वाला इंसान ज्यादा स्वस्थ व दीर्घायु होता है।
मित्रों! खुशमिज़ाजी से ही बनती है एंटीबाडी।
इस मुफ्त के उपचार को आजमाइए और मन मस्तिष्क को युवा बनाए रखिये। इसके लिए आपको सिर्फ इतना करना है कि हर छोटी से छोटी बात पर खुश रहने के अवसर खोजिये, चिंता, तनाव और भय को फटकने मत दो, फनी वीडियो-जोक, हंसी-मजाक की मूवी, टी.वी. शो, दोस्तों से गपशप बढ़ाती है इम्म्युनिटी।
मां की झप्पी, पापा का दुलार, पति-पत्नी का आपसी लगाव, अपनों के लिए दुआ और आपका सकारात्मक नज़रिया ही वैक्सीन तैयार करने का सरल नुस्ख़ा है।
अक्सर देखा गया है कि दफ्तरों में अधिकारी अपने मातहतों पर रौब डालने के लिए भय का वातावरण बना के रखते है इसके विपरीत अपने कार्य स्थलों पर हल्का-फुल्का माहौल रखें, अपने कर्मचारियों से आत्मियता से व्यवहार करें। उनकी केयर करें, उनकी भावनाओं का भी उतना ही सम्मान करें जितना आप स्वयं के लिए अपेक्षा करते हैं, तो सुनिश्चित जानिए कि विपरीत परिस्थितियों में भी कर्मचारी उच्चतम परिणाम देंगे ।
हां एक महत्वपूर्ण बात यह कि आप नकारात्मक संदेशों, खबरों और बातों से अधिकाधिक दूरियां बनाएं रखें, समाचार भी उतने ही जाने जो आवश्यक हो। इस वक़्त सिर्फ मनोरंजक सामग्री को ही आत्मसात करें।
इस वक़्त हम सभी को धैर्य और समझदारी से इस महामारी को हराना है। इसे दिल-दिमाग़ पर क़तई हावी नहीं होने देवें। अच्छा संगीत सुने अथवा गीत गाएं, सृजनात्मक कार्यों में स्वयं को व्यस्त रखें, भरपूर भोजन करें, नींद लें, जी भर के अपनों से हल्की-फुल्की बातचीत करें, अपनों के साथ हंसी-मजाक करें। पुराने अच्छे दिनों को याद करते हुए अपने अच्छे पलों के संस्मरण को लिपि-बद्ध करें!
हां! एक खास बात आप किसी से नाराज हैं, तो भूल जाइए। उसकी नाराजगी को भुलाकर उसकी अच्छी बातें याद करें, उसके साथ बिताए हुए अच्छे लम्हों को याद करने से आपकी नाराजगी फिर से दोस्ती में बदल जायेगी। उससे आप एक पॉजिटिव एनर्जी महसूस करेगें और दिल का बोझ भी कम होगा।
और सौ टके की एक बात आप अपनों के साथ ही साथ, अपने दोस्तों को मत भूलिएगा! विपरीत परिस्थितियों में ये दोस्त ही संजीवनी है, आपकी प्राणवायु (ऑक्सीजन) है इसलिए अपने दोस्तों को अपने करीब रखिये। स्कूल कॉलेज के दिन याद करके खुल के हंसो, ठहाका लगाओ, क्या रखा है झमेले में, कुछ काम नहीं आने वाला, पद – प्रतिष्ठा, ठाठ-बाट, रसूख, पैसा पावर, रूप-रंग, हार-श्रृंगार कुछ भी काम नहीं आने वाला। हां, अगर कुछ काम आएगा तो वह है आपका सकारात्मक नज़रिया अर्थात ज़िन्दगी और मौत की जंग को एक ज़िंदा-दिल इंसान ही जीत पाएगा।
यकीनन एक दिन सब ठीक हो जाएगा। दोस्तों! उतार दो गंभीर बने रहने का मुखौटा, घमंड के सिद्धांतों के बनावटी उसूल, बन जाइयें बच्चों में बच्चा, आप किसी भी उम्र के हो, कोई फर्क नहीं पड़ता, कहते है ना उम्र पचपन की और दिल बचपन सा। गुज़रा हुआ कल और दुनिया छोड़ कर जाने वाले कभी वापिस नहीं आते, इसलिए गुजरे हुए कल और जो नहीं है उसका रंज मत करिये, ये सोचिये सब नश्वर है, अमर कोई भी नहीं है, जो आज है वह कल नहीं होगा इसलिए आज में जीने का यत्न कीजिये। कल न जाने क्या होगा? कल हो न हो और ये जिंदगी मिलेगी न दुबारा, हर लम्हें को आखिरी पल मान के खुल के आज में जिये! लम्हा-लम्हा खुशी बाटें, कतरा-कतरा जिन्दगी का लुत्फ़ लीजिये! ज़्यादा गंभीर हो कर हमेशा तीर सही निशाने पर नहीं लगते, वक्त की आवाज़ को सुनना और नज़ाक़त को समझना ही आज के समय की मांग है! कौन सा हिटलर अमर हो गया, दुनिया जीतने वाला सिकंदर भी अजर-अमर हुआ और खाली हाथ इस दुनिया से विदा हुआ। इसलिए यही वक़्त है आप अपने अंदर के मसखरे को जगाइए, गंभीर विषयों को भी हंसते हुए निबटाइये! मरने के ग़म में जिन्दगी न बर्बाद कीजिये! जिंदगी जो बची है उसे अपनों के लिए बचा के रखें, जाने वाला अपनी तय की हुई जिंदगी जी कर चला जायेगा, उसका अफसोस करने से क्या हासिल होगा?
दोस्तों! हमारे वश में ना जीवन है, और ना ही मौत! ये सब ऊपर वाले का खेला है, खेलने दो उसे, उसकी इच्छा मान के आगे बढ़े चलो, रुकना नहीं है।
अमर गीत की ये पंक्तियां गुनगुनाईए...
“रुक जाना नहीं तू कहीं हार के, कांटों पे चलके मिलेंगे साए बहार के”! हां दोस्तों सच ही कहा है कहने वाले ने -
ज़िंदगी ज़िंदा-दिली का नाम है।
(लेखक लोक निर्माण विभाग विधुत/यांत्रिकी भोपाल चार इमली में पदस्थ हैं। वर्तमान में एसडीओ के रूप में सीहोर जिले का भी प्रभार है।इसके साथ ही भोपाल जिले की पर्यटन काउंसिल में सयुक्त सचिव के पद पर रहते हुए एडवेंचर और पर्यटन के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य एक दशक से कर रहे हैं। आपका सामाजिक सरोकार, साहित्य के क्षेत्र में भी दखल रहता है। अभी हाल ही एक गीत "ढूंढ़ता हूं खुद को' लिखा जिसे दुबई में फिल्माया गया है जिसे मशहूर संगीत निर्देशक एवं फ़िल्म निर्माता फौज़िया अर्शी मुंबई के द्वारा निर्मित किया गया। बहुत जल्दी ही कविताओं का संग्रह प्रकाशित होने वाला है। )
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