कला की दुनिया के एक गुमनाम नायक : श्री लक्ष्मण मुकुंद भाण्ड
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- Oct 16, 2021
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सर्जना एकेडेमी फ़ॉर डिज़ाइन एन्ड फ़ाइन आर्ट्स एवं आर्ट डिज़ाइन टीचर्स फ़ोरम द्वारा ऑनलाइन आयोजित इस कार्यक्रम में लक्ष्मण भाण्ड के नामी कलाकार बन चुके शिष्य, सहयोगी और वरिष्ठ कलाकारों ने श्रद्धांजलि अर्पित की।

पेन्टिंग केवल कैनवास पर रंग पोतना नहीं है बल्कि किसी रंग में ब्रश डुबाकर कैनवास तक लेजाने के पीछे एक लंबी विचार प्रक्रिया होती है। हर रंग का अपना स्वभाव और मनोविज्ञान होता है। लक्ष्मण भाण्ड न केवल एक उत्कृष्ट कलाकार थे बल्कि वो एक निष्णात कलागुरु, चिंतक, क्रांतिकारी विचारक एवं नवाचारी थे। ये बात वरिष्ठ साहित्यकार रामप्रकाश ने कही। वे कलाकार-कलागुरु लक्ष्मण भाण्ड की पाँचवी पुण्यतिथि
पर आयोजित 'आत्मीय स्मरण संध्या' में कही।

'ही वास् अन अनसंग हीरो ऑफ आर्ट वर्ल्ड' (वह कला की दुनिया के एक गुमनाम नायक थे) लेकिन उनकी कला और कला की समझ विश्वस्तरीय थी। ग्वालियर में जन्मे श्री लक्ष्मण मुकुंद भाण्ड ने 1964 में भोपाल में भाण्ड आर्ट स्कूल की स्थापना की जो 1978 तक चलता रहा। भाण्ड स्कूल से निकले कई विद्यार्थी आज नामी चित्रकार और शिक्षक हैं। कुछ प्रमुख नाम हैं: सुषमा श्रीवास्तव, विनय सप्रे, मंजूषा गांगुली, दिनेश दुबे। श्री भाण्ड जनसम्पर्क (पूर्व सूचना एवं प्रकाशन संचालनालय) में भी पदस्थ थे और प्रदर्शनी, झाँकी एवम मध्यप्रदेश संदेश सहित सभी प्रकाशनों में नवाचार करते रहे।
-अभिलाष खाण्डेकर,प्रसिद्ध पत्रकार

पूर्व जनसम्पर्क अधिकारी रघुराज सिंह ने कहा कि भाण्ड साहब बहुत अनुशासित अधिकारी थे और उनकी बनाए आर्टवर्क एकबार में ही स्वीकृत हो जाते थे। अपने शिष्यों में 'अण्णा' के नाम से लोकप्रिय श्री भाण्ड को याद करते हुए कलाकार विनय सप्रे ने बताया कि उनकी एनाटॉमी (शरीर रचना) की समझ अद्भुत थी और उनके समझाने का तरीका इतना सरल था कि एक बार में ही कठिन से कठिन सरंचना भी आसान लगने लगती थी। जैसे उन्होंने बताया था कि फ़िगर कभी भी शॉर्ट नहीं बनाना चाहिए। किसी कम्पोज़ीशन में फ़िगर्स के बाद सबसे अहम होता है कलर स्कीम। वरिष्ठ कलाकार सुषमा श्रीवास्तव ने कहा कि सम्पूर्ण शिक्षक के लिए कला के हर पक्ष में महारत होना ज़रूरी है और 'अण्णा' इसके साक्षात उदाहरण थे। वे स्टिल लाइफ़, नेचर ड्राइंग, पोर्ट्रेट, लाइफ़ स्टडी, रियलिस्टिक, एब्सट्रेक्ट आदि हर विधा में पारंगत थे। पैलेट में रंगों के निकालने में भी उनकी कलाकारी दिखती थी। उनके हाथ नदी के प्रवाह की तरह सहज चलते थे।

विख्यात कोलाज आर्टिस्ट मंजूषा गांगुली ने कहा कि उनके अण्णा ने मौलिकता का बीज बोया इसीलिए वो नई विधा 'कोलाज' अपना पायीं। मंजूषा ने बताया कि एक बार उनसे कुछ बन नहीं रहा था और इससे हताश हो वो अण्णा के पास गईं। भाण्ड साहब ने उन्हें एक कमरे में बंद कर दिया फिर एकाध घण्टे बार खोला और बोले 'कुछ बना?' मैं विस्मित थी और बोली कुछ नहीं बना। तब उन्होंने कहा कि कोई भी रचना के पीछे एक विचार होता है इसलिये चित्र बनाने के पहले चिंतन ज़रूरी है तभी कुछ अलग और मौलिक बन पड़ेगा।

कार्यक्रम में सकरी लक्ष्मण भाण्ड का क्यूबिस्म (घनवाद) के सरल शब्दों में समझते हुए वीडियो भी दिखाया गया। ग्वालियर मेडिकल कॉलेज में एनाटॉमी विभाग में चित्रकार के रूप में शुरुआत करने वाले लक्ष्मण भाण्ड साहब का निधन 86 वर्ष की आयु में 2016 में हुआ। उनकी इच्छानुसार उनकी देह मेडिकल के छात्रों के लिए दान दे दी गयी। लगभग तीन घंटे चली स्मरण संध्या में राजेश जोशी, विजय दत्त श्रीधर, जगदीश कौशल, डॉ सुशील त्रिवेदी, शोभा घारे, राजेन्द्र कोठारी, संजू जैन, रंजीत अरोरा, स्मिता नागदेव, विनय उपाध्याय सहित अनेक स्वजन शामिल हुए। आभार प्रदर्शन करते हुए अण्णा के पुत्र सुहास भाण्ड ने बताया कि भाण्ड साहिब की स्मृति में कलाकार और कलागुरु के लिए अवार्ड शुरू किया जाएगा साथ ही कई कला गतिविधियाँ भी निरंतर संचालित की जाएंगी। कार्यक्रम का संचालन सुनिल शुक्ल ने किया।
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