सिहोर का चिंतामन गणेश मंदिर जहां उल्टा स्वास्तिक बनाने से पूरी होती है मनोकामनाएं
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- Dec 7, 2018
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Updated: Dec 18, 2018
शीतल अटकड़े . Byline Bhopal

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
भगवान गणेश विघ्नहर्ता हैं, विद्यादाता हैं, धन-संपत्ति देने वाले हैं। कहते हैं जहां बुद्धि और विवेक हो, वहां अमंगल नहीं होता। गणेश बुद्धि और ज्ञान के देवता है। इसलिए, जहां मंगल की कामना हो वहां पहले गणपति को बुलाया जाता है। गणेश आते ही विघ्नों का नाश करते हैं। इस तरह गौरीपुत्र गणपति जीवन की हर परेशानी को दूर करने वाले हैं। उनकी उपासना मात्र से आपके सब कष्टों का निवारण हो जाता है।
प्रथम पूज्य भगवान गणपति की महिमा वैसे तो किसी से भी छिपी नहीं है, लेकिन कई बार हमें इसके साक्षात उदाहरण ही देखने मिल जाते हैं। गणपति बप्पा अपने जितने भी रूपों में जहां भी दर्शन दें, भक्त को उसका लाभ ही होता है। बप्पा के प्रत्येक रूप का अपना अलग ही महत्व है। फिर चाहे वह उज्जैन के स्थिरमन गणेश हों या फिर चिंतामण गणेश। एक ऐसा मंदिर की जिसकी महिमा और कथा सबसे निराली है ये मंदिर है सिहोर के सिद्धापुर स्थित चिंतामण गणेश। कहा जाता है कि भगवान गणपति आज भी यहां साक्षात मूर्ति रूप में निवास करते हैं। कहा जाता है कि बप्पा को यहां सच्चे मन से पूजने वाले कि हर मुराद बप्पा पूरी करते हैं। इसी वजह से गणेश उत्सव के अतिरिक्त भी यहां सालभर भक्तों का तांता लगा रहता है।
ऐसी कथा है प्रचलित
2000 वर्ष पूर्व उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य परमार वंश के राजा ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। मंदिर में स्थापित श्रीगणेश जी की मूर्ति खड़ी हुई है। मूर्ति जमीन के अंदर आधी धंसी हुई है, इसलिए आधी मूर्ति के ही दर्शन होते हैं। यह एक स्वयंभू प्रतिमा है। इस मंदिर का निर्माण विक्रम संवत् 155 में श्रीयंत्र के अनुरूप करवाया गया था। इस मंदिर को लेकर एक कथा भी प्रचलित है जो कि राजा विक्रमादित्य से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि विक्रमादित्य के पूजन से प्रसन्न होकर भगवान गणपति ने उन्हें दर्शन दिए और मूर्ति रूप में स्वयं ही यहां स्थापित हो गए । इस से जुड़ी प्रचलित कथा कुछ इस प्रकार हैः
प्रचलित कहानी के अनुसार एक बार राजा विक्रमादित्य के स्वप्न में गणपति आए और पार्वती नदी के तट पर पुष्प रूप में अपनी मूर्ति होने की बात बताते हुए उसे लाकर स्थापित करने का आदेश दिया। राजा विक्रमादित्य ने वैसा ही किया। पार्वती नदी के तट पर उन्हें वह पुष्प भी मिल गया और उसे रथ पर अपने साथ लेकर वह राज्य की ओर लौट पड़े। रास्ते में रात हो गई और अचानक वह पुष्प गणपति की मूर्ति में परिवर्तित होकर वहीं जमीन में धंस गया। राजा के साथ आए अंगरक्षकों ने जंजीर से रथ को बांधकर मूर्ति को जमीन से निकालने की बहुत कोशिश की पर मूर्ति निकली नहीं। तब विक्रमादित्य ने गणमति की मूर्ति वहीं स्थापित कर इस मंदिर का निर्माण कराया।

दूर करने आते थे अपनी चिंता स्थानीय लोग ऐसा भी बताते हैं कि जब भी विक्रमादित्य संकट में होते या कोई चिंता उन्हें परेशान करती तो वे बप्पा की शरण में यहां आते थे। जिसके बाद उन्हें अपनी समस्या का समाधान मिलने में ज्यादा देर नहीं लगती थी। ऐसी मान्यता के चलते भी लोग यहां अपनी समस्याओं को लेकर आते हैं और बप्पा से अपनी चिंता दूर करने की मन्नत मांगते हैं। ऐसा भी बताया जाता है कि गणपति की आंखें उस जमाने में हीरे की थीं किंतु बाद में इन्हें चोरों ने चुरा लिया। - ज्योतिषार्य पं. पृथ्वीवल्लभ दुबे, पुजारी एवं प्रबंधक- चिंतामन सिद्ध गणेश मंदिर, सिहोर ( नगर पुरोहित सिहोर (मप्र), सदस्य अखिल भारतीय निर्णायक मंडल ज्योतिष संघ)
उल्टा स्वास्तिक बनाने से पूरी होती मनोकामनाएं
यहां हर माह गणेश चतुर्थी पर भंडारा करने की प्रथा है। स्थानीय लोगों के अनुसार 60 साल पहले यहां प्लेग की बीमारी फैली थी। तब इसी मंदिर में लोगों ने इसके ठीक होने की प्रार्थना की और प्लेग के खत्म हो जाने पर गणेश चतुर्थी मनाए जाने की मन्नत रखी। प्लेग ठीक हो गया और तब से हर माह गणेश चतुर्थी पर भंडारे की यह प्रथा चली आ रही है। यहां आने वाले श्रद्धालु मंदिर के पिछले हिस्से में उल्टा स्वास्तिक बनाकर मन्नत रखते हैं और पूरी हो जाने पर दुबारा आकर उसे सीधी बनाते हैं।
क्या कहते हैं इतिहासकार
इतिहासकारों के मुताबिक इस मंदिर का जीर्णोद्धार और सभा मंडप बाजीराव पेशवा प्रथम ने बनवाया था। शालीवाहन शक, राजा भोज, कृष्ण राय तथा गौंड राजा नवल शाह आदि ने मंदिर की व्यवस्था में सहयोग दिया था। नानाजी पेशवा विठूर के समय मंदिर की ख्याति व प्रतिष्ठा दुनियाभर में फैल गई थी।
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