सतपुड़ा डैम को बेपरवाही भरी श्रद्धांजलि
- Byline
- Dec 2, 2019
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सारनी में 2800 एकड़ में फैला सतपुड़ा डैम अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। सलविनिया मोलेस्टा खरपतवार ने इसे दूषित कर दिया है।
Amit Pathe Pawar | Byline Betul | www.BylineBhopal.com Mobile#8130877024
आज से लगभग देढ़ साल पहले सतपुड़ा डैम में सलविनिया मोलेस्टा (चाइनीज झालर) नामक खरपतवार पनपना शुरू हुई। देखते ही देखते, कुछ महीनों में इसने पूरे डैम को अपनी चपेट में ले लिया। अब डैम एक खेल के मैदान की तरह प्रतीत होने लगा है। जब बात बढ़ी तो सतपुड़ा ताप विद्युत गृह सारनी प्रबंधन ने अक्टूबर 2018 में जबलपुर से वैज्ञानिकों का दल बुलाया। उन्होंने प्रबंधन को जल्द से जल्द सतपुड़ा जलाशय की सफाई करवाने का सुझाव दिया। लगभग चार महीने बाद फरवरी 2019 में जलाशय की सफाई के लिए टेंडर निकाला गया, जिस पर मार्च 2019 से काम शुरू हुआ। लेकिन आज यह डैम अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है।

सारनी के नाम खुला-ख़त
मैं सतपुड़ा डैम हूं। सतपुड़ा की वादियों और भोपाली पर्वत श्रृंखला से बहकर आती तवा नदी मेरी मां है। सतपुड़ा के पवित्र पहाड़ों, कंदराओं, झरनों, घाटियों, गुफाओं, झिरियाओं और चट्टानों से रिसकर आते पावन जल को मैंने अपने दामन में संजोया है। बांध बनने के साथ 1963 में मेरा जन्म हुआ। तब, 11 अक्टूबर को रविवार का वो दिन मुझे आज भी याद है। पूरे जिले और सारनी क्षेत्र के लोगों में मेरे उद्घाटन को लेकर उत्साह का माहौल था। मेरे 14 हाथ यानी गेट बने थे इसलिए लोगों ने प्यार से मुझे ‘चौदह-फाटक’ भी कहना शुरू किया। इस जल को सतपुड़ा ताप विद्युत गृह सारनी ने उपयोग में लिया। बिजली बनाई जिससे राष्ट्र रौशन हुआ और विकास का उजाला फैला। मेरे दामन में समाए जल से क्षेत्र के लोगों ने अपनी प्यास बुझाने से लेकर मेरा आचमन तक किया। श्रीगणेश और मांदुर्गा की मूर्तियां मुझमें सादर विसर्जित हुईं। छठ पर मेरे घाट से लोगों ने सूर्य को अर्ध्य दिया। बच्चों और नवयुवाओं के लिए मैं पिकनिक स्पॉट बना। सारनी आए मेहमानों का पर्यटन स्थल बना। सुबह और शाम की सैर, दौड़ और साइकलिंग का प्रमुख स्थल बना। प्रेमी जोड़ों के लिए सुकून भरा रुहानी स्थल बना। मछुआरों के लिए उनकी रोजी-रोटी बना। क्षेत्र के लोगों की गिलास का पानी और थाली की मछली मेरे दामन से ही गई। जैसे-जैसे मेरी उम्र के दशक बीतते गए और मैं अधेड़ उम्र का हुआ, मेरी देख-रेख कम होती गई। सतपुड़ा ताप विद्युत गृह की राख के अंश मेरी तलहटी में गाद की तरह जमा होने लगे। मेरे दामन का भराव क्षेत्र कम हुआ। यूं कहें कि मेरा पेट सुकड़ने लगा। इसे उम्र और परिस्थितियों का पड़ाव समझते हुए मैं सब झेलता गया। लेकिन 50 की उम्र पार करते ही एक हरे-भरे शत्रु ने मुझ पर हमला बोला। सलविनिया मोलेस्टा नाम की इस खरपतवार ने मानों कैंसर की तरह मेरे दामन पर अपना अवैध कब्जा कर लिया। मुझे ढ़क दिया। सूर्य की गुनगुनी धूप और ऑक्सीजन जो मेरे दामन में पल रहे जीवों और प्रृकृति के संतुलन के लिए जरूरी थी, उसे ढक दिया। ये खरपतवार मेरा ही जल चूसती और दस दिन में दोगुनी हो जाती। ये यहीं सड़कर मेरे जल को मैला, गंदेला, बदबूदार और दूषित करती। पूरे जीवन भर जिस सारनी परिवार का मैंने पालन-पोषण किया, उनके जीवन का हिस्सा रहा, आज उसी सारनी परिवार में मेरी हैसियत किसी वृद्ध पिता की तरह हो गई है। मैं खरपतवारी कैंसर से ग्रसित, बीमार और वृद्ध चौदह-फाटक हो गया हूं। लेकिन एक आस अब भी पाले बैठा हूं कि मेरा सारनी परिवार, शासन-प्रशासन, ताप विद्युत गृह प्रबंधन, नपा, एनजीटी आदि मेरी सुध लेने के लिए जागरुक होंगे। और काश! मैं उन बीते दिनों वाला प्यारा चौदह-फाटक हो जाउंगा।
- तुम्हारा, बीमार सतपुड़ा डैम 'चौदह-फाटक'
(लेखकः अमित पाठे पवार)
क्या है सलविनिया मोलेस्टा खरपतवार, सतपुड़ा जलाशय को क्या हो रहा नुकसान
सलविनिया मोलेस्टा पानी के उपर तैरने वाला जलीय पौधा है, यह मूलतः साउथ ब्राजील का पौधा है। दिखने में आकर्षक होने की वजह से एक्वेरियम व अन्य जगहों पर रखने के लिए इसका विश्व के कई देशों में परिवहन हुआ और फिर लोगों द्वारा इसे नदियों और झीलों में फेंका गया जिससे यह प्रकृतिक नदियों में और जलाशय आदि में फैल गया। संभवतः भारत में भी यह इसी तरह पहुंचा व पनपा होगा। सलविनिया मोलेस्टा अनुकूल वातावरण मिलने पर लगभग सात दिन में दोगुना हो जाता है। इसलिए पानी की निचली सतह पर मौजूद काई व अन्य पौधों की धूप न मिलने कि वजह से मृत्यु हो जाती है। इससे वह सड़ने लगते हैं और पानी प्रदूषित हो जाता है। दूषित पानी के इस्तेमाल से इंसानों व अन्य जीवों को बीमारियां होती है। सलविनिया मोलेस्टा डेंगू मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों के लारवा के पनपने के लिए उपयुक्त वातावरण प्रदान करता है ।
पीपल फॉर एनिमल्स यूनिट सारनी के अध्यक्ष और इस मामले को विभिन्न स्तरों पर उठाने वाले युवा प्रकृतिप्रेमी आदिल खान ने होशंगाबाद डिवीजन के जल संसाधन विभाग के मुख्य अभियंता को ईमेल कर सतपुड़ा जलाशय साफ करवाने की मांग की। साथ ही सितंबर 2018 में थोड़ी मात्रा में जो खरपतवार सतपुड़ा जलाशय से तवा नदी में बही थी उसे भी साफ करवाने की मांग की गई।
मार्च 2019 में सतपुड़ा जलाशय की सफाई का शुरू होने वाला काम अंततः मई 2019 से प्रारंभ किया गया। ज्ञात हो कि वैज्ञानिकों द्वारा 80% जलाशय खरपतवार से ग्रसित बताया गया था परंतु प्रबंधन द्वारा सिर्फ 10% जलाशय की सफाई का टेंडर ही निकाला गया। जलाशय साफ करने के लिए जो वीड हारवेस्टर मशीन लाई गई जो एक सप्ताह से भी कम समय में खराब हो गई। सतपुड़ा जलाशय को साफ करने लाई गई वीड हारवेस्टर मशीन को भी 13 अक्टूबर को सतपुड़ा जलाशय से निकाल कर सारनी से बहार भेज दिया गया। जबसे ही अधिकांश कार्य मजदूरों से ही करवाया गया। टेंडर के नियम व शर्तो के अनुसार यह कार्य मशीन से किया जाना था परंतु मजदूरों से गहरे पानी में बिना किसी सेफ्टी के यह कार्य करवाया गया। यह खरपतवार बहुत तेज़ी से पनपती है जिसे मजदूरों से साफ करवाना संभव भी नहीं है। आदिल खान द्वारा राष्ट्रीय हरित क्रांति (NGT), मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में इस मामले की शिकायत की और जलाशय साफ करवाने की मांग की। साथ ही प्रधानमंत्री, उर्जा मंत्री समेत अन्य कई विभागों को संज्ञान हेतु ईमेल भी किया।

सतपुड़ा डैम का पानी प्रदूषित हो रहा है, जलीय जीवों की मृत्यु हो रही है, जल पर निर्भर करने वाले पक्षियों का जीवन भी संकटग्रस्त है, शहर में प्रदूषित जल से त्वचा संबंधी बीमारियां फैल रही है और सरकारी काम से ना उम्मीद आदिल आज भी इसी जद्दोजहद में लगे हुए हैं कि शायद कोई विभाग मामले की गंभीरता को समझते हुए जलाशय की सफाई करवा दे और जलाशय पहले कि तरह जीवित हो जाए ।
यह खरपतवार फैलने से जल पर निर्भर करने वाले प्रवासी पक्षियों को आसमान से जलाशय में पानी नहीं दिखाई देता जिस वजह से वे कहीं और जाने को मजबूर हो जाते हैं या रुकते ही नहीं हैं। अगर रुकते हैं तो भोजन न मिलने कि वजह से उनका जीवन भी संकटग्रस्त हो जाता है। इस खरपतवार से पानी का वाष्पीकरण भी तेजी से होता है। मछलियों का व्यापार करने वाले मछुआरों का जीवन भी मछलियां न मिलने से संकटग्रस्त हो जाता है। भारतीय जलवायु इस पौधे के पनपने के लिए उपयुक्त वातावरण प्रदान करती है। जैसा सतपुड़ा जलाशय की सेटेलाइट तस्वीर में देखा जा सकता है मात्र एक साल में 2800 एकड़ में फैला सतपुड़ा जलाशय खरपतवार कि वजह से हरा हो गया है। इस पौधे के दुष्प्रभाव को देखते हुए इसे ऑस्ट्रेलिया में प्रतिबंधित किया गया है। भारत देश कृषि और जल पर निर्भर करने वाला देश है और हर साल सूखा पड़ने कि वजह से बहुत नुकसान होता है ऐसे में इस तरह कि खरपतवार देश को नए संकट में डाल सकती है ।
आदिल द्वारा भेजें गए ईमेल पर उर्जा मंत्री ने संज्ञान लिया है लेकिन सतपुड़ा ताप विद्युत ग्रह सारनी का प्रबंधन मंत्री द्वारा संज्ञान लेने के बाद भी मामले को गंभीरता से नहीं ले रहा है, इतना सब हो जाने के बाद भी आज सतपुड़ा जलाशय के हालात बेहद गंभीर है और चिंताजनक स्थिति बनी हुई है। वही राष्ट्रीय हरित क्रांति कि मध्यप्रदेश बेंच ने शिकायत को दिल्ली में राष्ट्रीय हरित क्रांति कि प्रिंसिपल बेंच को भेजा है, जिसमें आगे प्रोसेस होने में समय लगेगा। वहीं, मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड मामले में हस्तक्षेप करने से लगातार बच रहा है और गोलमोल जवाब देकर कार्यवाही करने में विलंब कर रहा हैं ।
कार्रवाई के डर से श्रमदान में जुटे अधिकारी
लंबे समय से विवादों में रहें सतपुड़ा जलाशय में फैली खरपतवार के मामले में लगातार शिकायत होने के बाद सतपुड़ा ताप विद्युत ग्रह सारनी प्रबंधन को घुटने टेकने पर मजबूर होना पड़ा और जलाशय में श्रमदान का दिखावा करना पड़ा। एक तरफ तो सिविल विभाग द्वारा लगातार यह दावे किए जा रहे थे कि जलाशय कि सफाई का कार्य युद्ध स्तर पर चल रहा है और अब उसी जलाशय में मुख्य अभियंता समेत कई अधिकारियों का श्रमदान कर खरपतवार हटाना यह दर्शाता है कि जलाशय में जो सफाई का कार्य चल रहा था वो विफल साबित हुआ है ।

इस मामले को पिछले लगभग एक साल से आदिल खान द्वारा उठाया जा रहा है और लगातार जलाशय कि सफाई कि मांग की जा रही थी। उसकी शिकायत भी आदिल द्वारा बहुत से विभागों में की गई। प्रधानमंत्री, एनजीटी, उर्जा मंत्री, मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, बैतूल कलेक्टर समेत कई अन्य विभागों में आदिल के माध्यम से शिकायत की गई। परंतु अधिकारियों द्वारा लगातार सबको गुमराह करके जलाशय साफ होना बताया जा रहा था। हाल ही में आदिल की शिकायत पर छठ पूजा के समय कलेक्टर तेजस्वी एस नायक समेत जिले के कई अधिकारियों ने सतपुड़ा जलाशय का निरिक्षण किया था एवं जलाशय की हालात देख कर दंग रह गए। उन्होंने सतपुड़ा ताप विद्युत ग्रह सारनी प्रबंधन को आड़े हाथों लेते हुए जलाशय की सफाई करने की नसीहत दी। जिसका नतीजा यह हुआ कि मुख्य अभियंता, अतिरिक्त मुख्य अभियंता समेत कई अधिकारी जलाशय में श्रमदान करने जुट गए। हाल में इस पूरे मामले को लेकर सतपुड़ा ताप विद्युत गृह के सीनियर अधिकारी का ट्रांसफर भी हुआ। लेकिन सतपुड़ा डैम अब भी जस-का-तस स्थिति में अपनी दुर्दशा पर आंसु बहा रहा है। इसकी सुध लेने के लिए सारनी की जनता, जनप्रतिनिधि, शासन-प्रशासन और सतपुड़ा ताप विद्युत गृह को गंभीर होना होगा ताकि सारनी की लाइफलाइन कहे जाने वाले सतपुड़ा डैम को बचाया जा सके।
(Amit Pathe Pawar is a Journalist and Graphic Designer. Worked with The Times of India, Navbharat Times, Patrika & Dainik Bhaskar.)
All Photos courtesy: Adil Khan President, People for animals, unit Sarni
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