मुक्ताकाश मंच पर मोहन वीणा
- Byline
- Feb 14, 2019
- 4 min read
Amit Pathe . Byline Bhopal
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बहुकला केंद्र भारत भवन की 37वीं वर्षगांठ के उत्सव की पहली सांझ, पं. विश्वमोहन भट्ट की मोहन वीणा के नाम रही। जिस तरह भारत भवन का पूरे देश में नाम है, उसी तरह पंडित जी ने अपनी प्रस्तुति में वंदे मातरम् और राष्ट्रगान को शामिल कर उसे देश को समर्पित किया। उन्होंने भारत भवन के उत्सव के अवसर पर फेस्टिव मूड के राग मारु विहाग पर आधारित प्रस्तुति दी।

माघ में शिशिर ऋतु की संध्या, बड़ी झील किनारे पर बहती सुर्ख हवाओं में मानो वसंत-उत्सव की खुशबू का अहसास बह रहा था। वहीं, भारत भवन के मुक्ताकाश मंच पर उसके वर्षगांठ उत्सव का मंच सजा हुआ था। झील किनारे गगन-वृक्ष पर विचरण व कलरव करते पंक्षी मानो प्रकृति के उत्सव-राग सुना रहे थे। वसंत के चरम यौवन और पतझड़ की आमद के संधि की ये सांझ गुलाबी ठंड और गुनगुनी गर्मी दोनों का अहसास करवा रही थी। खामोशी से खड़े दरख़्त मानो चैन से संगीत संध्या के शुरु होने का इंतजार कर रहे थे। टहनियों से झड़ता एक-एक पत्ता मानों भारत भवन के वर्षगांठ समारोह की पहली संध्या के एक-एक पल का काउंटडाउन करते हुए गिर रहा था। तो, पंडित विश्वमोहन भट्ट अपनी प्रस्तुति में पंक्षियों के कलरव को शामिल करने से कैसे रह जाते। उन्होंने अपनी मोहन वीणा के तारों पर कोयल की कूंक और चिड़िया की चहचहाहट बजाकर सुनाई। भोपाल की फिज़ाओ और आबो-हवा के पंडित जी भी कद्रदान हैं। उन्होंने कहा, 'जब भी मैं भोपाल आता हूं, यहां की फिज़ाओं में, यहां के वातावरण में, यहां के तालाब में ऐसी अनुभूति होती है मुझे, दिल चाहता है बार-बार आऊं यहां। और इतने अच्छे श्रोता मिलते हैं यहां पर। पिछली बार याद है मुझे देर रात तक लोग-बाग बैठे रहे और संगीत का आनंद लेते रहे।'
भारत भवन के आधार पर देश में खुल रहे हैं क्लचर सेंटर्स
मोहन वीणा के जनक और पर्याय पंडित जी ने कहा, 'भारत भवन अब एक ऐसा नाम बन चुका है जो जाना जाता है पूरे देश में संस्कृति के प्रचार-प्रसार एवं संरक्षण व संवर्धन के लिए। भारत भवन ने जो कर के दिखा दिया है और उसी रास्ते पर हमारे भारत वर्ष में कई सेंटर्स खुल रहे हैं। मैं जयपुर से हूं, वहां जवाहर कला केंद्र की स्थापना भी भारत भवन को देखकर ही हुई।'
मध्य प्रदेश में नई सरकार के गठन के साथ ही राष्ट्रगीत 'वंदे मातरम्' पर विवाद हो गया था। लेकिन संगीत इससे परे है। पंडित जी ने 'वंदे मातरम्' सुनाकर श्रोताओं का मन मोह लिया। तबला वादक हिमांशु सोलंकी के साथ उन्होंने कुछ जुगलबंदियों की झलक भी दी। प्रस्तुति से पहले सौम्यता से उन्होंने कहा, जिस कलाकार की यहां प्रस्तुति होनी थी मैं उनका सब्सीट्यूट बनकर आया हूं। कोशिश करूंगा कि थोड़ी सी ऊंचाई छू सकूं।'
Bhopal is Singing better than me...
प्रस्तुति के दौरान पंडित जी ने श्रोताओं से सीधा संवाद साधा और उन्हें साथ में 'ला, ला, ला, ला...' की लय पर अपने साथ-साथ गाने को कहा। श्रोताओं के उत्साह और जोश को देखकर उन्होंने खुशी से कहा कि Bhopal is singing better than me.
इसके बाद कुछेक लोग महफिल से उठकर जाने को हुए तो पंडित जी ने 'आज जाने की ज़िद ना करो...' सुनाकर उन्हें रोक लिया। उसके बाद उन्होंने 1994 की उनकी ग्रैमी अवॉर्ड विनिंग एल्बम The meeting by the river की दो प्रस्तुतियां दीं। इससे पहले संगीता गोस्वामी व साथियों ने 'नमो-नमो...' और 'जगदीश हरे...' गाकर संध्या का श्रीगणेश किया।
20 स्ट्रिंग और तीन मैलोडी स्ट्रिंग वाली है मोहन वीणा
मोहन वीणा सितार, सरोद, वीणा और गिटार का सुमेल है। इसमें कुल 20 स्ट्रिंग होती हैं जिनमें तीन मैलोडी स्ट्रिंग होती है। छह तारों वाले पाश्चात्य वाद्य गिटार को उन्होंने तीन दर्जन से भी अधिक छोटे बड़े तारों से सुसज्जित कर और नया आकार देकर एक नया वाद्य इजाद किया जिसे उन्होंने मोहन वीणा के नाम स्थापित किया।
1994 में मिल चुका है ग्रेमी अवार्ड
आज यह वाद्य पूरी दुनिया में अपनी टोनल क्वालिटी के लिए जाना जाता है। संगीत के इस वाद्य का एक प्रकार से पर्याय बनकर विश्व ख्याति अर्जित करने वाले विश्व मोहन भट्ट का जन्म 27 जुलाई 1950 को जयपुर में हुआ।
अमेरिकी गिटार वादक राय कूडर के साथ बनाए उनके एलबम ए मीटिंग बाय द रिवार को 1994 में दुनिया का सर्वोच्च ग्रेमी अवार्ड भी मिल चुका है।
इनके दो एलबमों म्यूजि़क ऑफ रिलेक्सेशन और मेघदूतम को भी ख्याति मिली है।
संगीत में शोध, सृजन, मौलिकता और नवाचार की पांच दशक की यात्रा में पंडित विश्वमोहन भट्ट को अनेक महत्वपूर्ण पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हुए हैं। इनमें पद्मश्री, संगीत नाटक अकादमी सम्मान, स्टार ऑफ इंडिया अवार्ड, वाद्य रत्नाकर, राजस्थानश्री, तंत्री सम्राट, स्वर शिरोमणि, सुरमणि, तानश्री एवं विश्वप्रसिद्ध ग्रैमी अवार्ड आदि शामिल हैं।
शास्त्रीय संगीत है भारत की पहचान
भारतीय शास्त्रीय संगीत के जो शुद्ध और पवित्र सुर हैं उसमें खो जाएं। थोड़ी देर के लिए हम अपने दिमाग को खाली कर दें और सिर्फ संगीत का सौन्दर्य भाव देंखें। आनंद ले। ये जो भारतीय शास्त्रीय संगीत है वो दिलों में प्यार और इज्जत के भाव बढ़ाता है। ईश्वर से लौ लगाता है। कहते हैं ये म्यूजिक आत्मा, हृदय और शरीर की शुद्धि का काम करता है। 85 देशों में प्रस्तुति के दौरान मैंने अनुभव प्राप्त किया कि हमारा देश शास्त्रीय संगीत के लिए जाना जाता है है और लोग इसे बहुत पसंद करते हैं।
(Amit is a Journalist & Graphics Designer. Worked for Delhi Times, NBT Lucknow Times, Patrika and Bhaskar group.)
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