देवों के देव मठारदेव
- Byline
- Jan 14, 2021
- 7 min read
।। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्, उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ।।
Amit Pathe Pawar . www.BylineBhopal.com (mobile# 8130877024)
बैतूल जिले के सारनी में, सतपुड़ा की वादियों और कन्दराओं में पावन ॐकारेश्वर मठारदेव धाम है। करीब 3000 फीट ऊंचाई पर सतपुड़ा की मठारदेव चोटी पर श्री श्री 1008 मठारदेव बाबा विराजित हैं। वे सतपुड़ा की इस मठारदेव पर्वत शृंखला के राजा भी हैं। इसके निकट ही महादेव पर्वत शृंखला है जिसके बारे में ऐसी आध्यात्मिक मान्यता है कि इसमें स्वयं शिव लेटे हुए हैं। इसमें चौरागढ़, पचमढ़ी, भूराभगत और छोटा भोपाली जैसे शिव सम्बंधित प्रमुख धार्मिक स्थल हैं। पचमढ़ी के महादेव पर्वत शृंखला की कालीभीत पहाड़ी से उद्गम के बाद तवा नदी यहां मठारदेव बाबा के चरणों को धोती हुई प्रवाहित होती है। शिव के पसीने से उत्पन्न हुई नर्मदा की सहायक नदी तवा को शिव की नाभि से निकला माना जाता है। होशंगाबाद में नर्मदा के बान्द्राबांध संगम पर तवा, नर्मदा में समाहित होकर पश्चिम में अरब सागर की ओर गमन कर लेती है। महादेव पर्वत शृंखला के कालीभीत पर्वत से निकलकर तवा नदी, नर्मदा में समाहित होकर समुद्र तक की इस सैकड़ों किलोमीटर लंबी यात्रा का पहला पड़ाव सारनी ही है। उद्गम से सारनी तक की यात्रा के दौरान तवा इन महादेव पहाड़ियों में सर्पिल आकार में ‘ॐ’ आकार बनाती है। इसका ‘उ’ आकर सारनी पर ही आकर पूर्ण होता है। यहां तवा मठारदेव पर्वत शृंखला के चरण धोते हुए यात्रा का श्रीगणेश करती है। (गूगल मैप पर देखने पर आप ‘ॐ’ का यह ‘उ’ आकर आसानी से पहचान सकते हैं।) मां नर्मदा भी मांधाता के ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग में ऐसे ही सर्पिल आकार में ‘ॐ’ के ‘उ’ आकार की रचना करती हैं।

मठारदेव में 43 वर्षों से जारी है मकर संक्रांति मेला, सारनी बनेगा पर्यटन स्थल
बाबा मठारदेव के भक्तों ने सन् 1978 में सारनी में सर्वप्रथम मकर संक्रांति पर मेले की शुरुआत की। तब से प्रतिवर्ष (12 जनवरी से 22 जनवरी तक) मकर संक्रांति के पावन पर्व पर 11 दिवसीय मेले तथा विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है। इन्द्रधनुषी रंग यहां के मेले में देखने को मिलते हैं। इस अवसर पर लाखों श्रद्धालु बाबा के दर्शन करने आते हैं और शिखर मंदिर भी जाते हैं। श्री बाबा मठारदेव जी के आशीर्वाद से सभी भक्तों के मनोरथ पूर्ण होते हैं। अब तलहटी पर भी भव्य व आकर्षक मंदिर बन गया है। बाबा मठारदेव मेला समिति ने जनवरी 2008 में शिखर मंदिर पर शिवलिंग की स्थापना कराई। आकर्षक डिजाइन और रंग-रोगन सहित यहां तमाम मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध हैं। बड़ा आधुनिक प्रांगण, प्रकाश व्यवस्था, शेड और बैठक व्यवस्था यहां की गई है। इसी मंदिर की ढलान पर एक लंबे चौड़े भू-भाग पर एक अच्छे प्रबंधन के साथ यह मेला आयोजित किया जाता है। इस मेले का एक और आकर्षण है है यहां आयोजित होने वाली रामसत्ता। यहां प्रमुखता से रामसत्ता प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। यह गायन एवं नृत्य की ग्रामीण परम्परा पर आधारित एक शैली है। इस मेले को सफल बनाने के लिए कई और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन होता है। आज बैतूल के अन्य पर्यटक स्थलों में सारनी के मठारदेव बाबा का तीर्थ स्थल भी तेजी से उभरा है। मठारदेव को तीर्थ स्थल के साथ सारनी की प्राकृतिक सुंदरता को ध्यान में रखकर इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के प्रयास जारी है। सारनी स्थित सतपुड़ा डैम पर कई वॉटर स्पोर्ट्स एक्टिविटी शुरू कर इसे पर्यटन नगरी के रूप में प्रस्तुत किया जाना भी प्रस्तावित है।
सारनी से जुड़ी है बाबा मठारदेव की दशकों पुरानी अद्भुत महिमा
बाबा और सारनी के संबंध में यह जानकारी है कि जब सारनी ताप बिजली घर की स्थापना की जा रही थी तब एक पीपल का पेड़ पावर हाऊस परिसर में स्थित था। अमेरिका कंपनी एमडबल्यू के अधिकारी मॉरीसन एवं उसके नेतृत्व में काम कर रहे मजदूर जब भी पीपल के उस पेड़ को काटने के लिए जाते थे, तो वह कुल्हाड़ी से कटता ही नहीं था। काफी प्रयासों के बाद सफलता नहीं मिली, तब एक दिव्य पुरूष ने आकर बाबा मठारदेव की पूजा-अर्चना की युक्ति बतलाई। बाबा के चमत्कार के बारे में सारनी ताप बिजली घर के कर्मचारी बताते हैं कि बाबा के मंदिर में 1966 में तत्कालिक सतपुड़ा ताप बिजली घर के प्रोजेक्ट ऑफिसर डीएस तिवारी ने पहली बार बिजली पहुंचाई जो आज तक जल रही है। कहा जाता है कि 1966 से सारनी ताप बिजली घर में दुर्घटनाएं तथा अकाल मौत में कमी आई। बाबा मठारदेव के बारे में कहा जाता है कि केंद्र व राज्य के अनेक मंत्रियों को उन्होंने अपना भक्त बना रखा है। बताया जाता है कि सारनी आकर जिस भी मंत्री ने बाबा के दरबार में हाजरी नहीं लगाई वे यहां से जाने के बाद अपना पद गवां चुके हैं। इस बात को प्रमाणित करती लंबी चौड़ी लिस्ट बाबा के भक्तों के पास है।
3 हजार फीट लंबे मठारदेव पर्वत पर बाबा हुए थे अन्तर्ध्यान, बना है भव्य मंदिर
एक बार मकर संक्रांति के दौरान श्री बाबा मठारदेवजी ने शिखर मंदिर पर स्थित गुफा में समाधि लगाकर शिव पंचाक्षरी मंत्र ओम नमः शिवाय का अखण्ड जाप किया तब श्री बाबा के भक्त कड़कड़ाती ठंड में बाहर बैठकर सारी रात भजन-कीर्तन कर श्री बाबा के दर्शनों के लिए प्रतीक्षा करते रहे किन्तु प्रातः काल तक श्री बाबा गुफा से बाहर नहीं आए तब गुफा के अन्दर जाकर भक्तों ने पाया कि जहां बाबा आराधनारत् थे वहां पर खुशबू फैली हुई है एवं पुष्पों का समूह केवल मात्र वहां था। बाबा अर्न्तध्यान हो गए थे। श्री बाबाजी ने शिखर पर जिस गुफा में रहकर कठोर तप किया था कालांतर में वह लुप्त हो गई, उसी स्थान पर श्री मठारदेव बाबा के भक्तों ने विशाल मंदिर का निर्माण किया है।
संत श्री मठारदेव बाबा की महिमा
यह मठारदेव बाबा की तपोभूमि है। ऐसी मान्यता है कि तीन शताब्दी पूर्व बरेठा बाबा, बागदेव बाबा तथा मठारदेव बाबा नामक तीन चमत्कारी संत पुरूष भगवान शिव के उपासक के रूप में प्रसिद्घ थे। श्री श्री 1008 बाबा मठारदेव के बारे में कुछ लोगों का कहना है कि बाबा ने पचमढ़ी स्थित चौरागढ़ पर्वत के नीचे भुरा भगत आश्रम में रहकर कठोर तप किया। तब देवाधिदेव भगवान महादेव ने अपने दिव्य दर्शन देकर बाबा को सतपुड़ा पर्वत श्रेणी में अपने एक निवास स्थान जिसे लोग भोपाली के छोटे महादेव के नाम से पूजते हैं । इस स्थान का पता बता कर बाबा मठार देव को सिद्घ संत पुरूष बनने का आशिर्वाद दिया। इस बारे में जानकार लोगों ने बताया कि बाबा प्रतिदिन ब्रम्ह मुहुर्त में भूरा भगत आश्रम से निकलकर पवित्र तवा नदी में स्नान कर छोटा महादेव जाकर प्राकृतिक रूप से बने शिवलिंग का जल अभिषेक, पूजन करने के बाद सूर्य अस्त तक वापस भूरा भगत आकर विश्राम करते थे। बाबा मठारदेव का यह नित्यकर्म बरसों तक चला। एक कथा इस प्रकार की है कि एक समय मकर संक्राति पर सूर्य ग्रहण पड़ा। उस समय बाबा ने तवा नदी के गहरे जल में शिव आराधना कर भगवान आशुतोष से यह आशीर्वाद प्राप्त किया कि वे आज के बाद सतपुड़ा की इन श्रेणियों में आने वाले मठों के मठाधीश कहे जायेंगे।
किदवंती कथाओं के अनुसार श्री श्री 1008 बाबा मठारदेव ने 300 वर्ष पूर्व इस शिखर पर तप किया था। बाबा का यही बिम्ब भक्तों के हृदय में है। यही छवि मुर्ति रूप में यहां मंदिर में भी विराजमान है। जनश्रुति के अनुसार आदिवासियों विशेषकर गोंड जाति के प्रतिनिधि संत मठारदेव बाबा हुए है। वे चुंकि मठा या मही से शिव पिंड का अभिषेक करते थे, अतः उनका नाम मठारदेव बाबा पड़ गया। यहां के बुजुर्गो के अनुसार उनमें जादुई एवं पारलौकिक शक्तियां थी। उनके जीवन काल में ही उनके अनुयाईयों की संख्या बहुत बढ़ गई थी।
मठारदेव पर्वत के शिखर पर ही एक सिद्ध वट वृक्ष के पास बाबा की मढ़िया थी। आज वहां एक भव्य मंदिर है रात्रि में वहां का प्रकाश पच्चीसों मील दूरी से देखा जा सकता है। 1960-61 के आसपास जब ताप विद्युत गृह का निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ था। तब कुछ उत्साही युवक इस पहाड़ के शिखर पर पहुंचे थे। वहां उन्होंने एक घास पूस की मढ़िया देखी, जिसके समक्ष धूनी जल रही थी। शिवलिंग पर ताजा फूल चढ़े थे। पर उन्हें वहां कोई व्यक्ति दिखाई नहीं दिया। शिव आशीर्वाद के कारण ही बाबा मठारदेव कहलाए। एक किदवंती कथा बाबा मठार देव के बारे में यह भी है कि बाबा ग्वाला जाति के थे। वे ग्वालों की खोई हुई भैसों को चराया करते थे। वहीं पर दूसरी ओर कोरकू जाति के लोग बाबा को अपनी बिरादरी का मानते हैं। जानकारों का तो यहां तक कहना है कि बाबा की एक बहन तथा एक पुत्र भी है। बहन का निवास स्थान उसी पीपल के पेड़ में था जो नहीं कटता था। सारनी दमुआ मार्ग पर स्थित बाबा कुवर देव को मठारदेव बाबा का पुत्र बताते हैं। बताया जाता है कि इस पर्वत माला पर जंगली बाबा, महंतगिरी नागा बाबा और रामलाल बाबा ने अपना डेरा बनाया था। शिव आराधना का चमत्कार कह लीजिये कि बाबा के निवास स्थान के पास एक लंगड़े सफेद शेर की गुफा थी जिसमें वह रहा करता था। जब ग्वालों के पालतू जानवरों का शेर शिकार करते थे तब बाबा ने ही शेर के आतंक से ग्वालों को मुक्ति दिलाई। इस शेर को बाबा ने अपना सहचर बना लिया। कहा जाता है कि शेर के आतंक से भयमुक्त ग्वालेबाबा को प्रतिदिन मठा और दूध दिया करते थे। बाबा के चमत्कार के कारण आज भी आसपास के क्षेत्र के ग्वाले बाबा के अनन्य भक्त हैं तथा वे बाबा को मठा व दूध चढ़ाते हैं। विशाल पर्वत माला में एक ऐसे जल का भंडार उनके भक्तों को दिया है कि वह आज भी निरंतर बहता ही रहता है। इस पर्वत शिखर माला का जल जिसमें कई प्रकार की जड़ी-बूटी घुल कर समाहित है, पेट की बीमारियों के लिए एवं हृदय रोगियों के लिए रामबाण साबित हुआ है।
(Amit is a Journalist, writer and Graphic Designer.
Worked with The Times of India, Navbharat Times,
Navdunia, Peoples Samachar, Patrika & Dainik Bhaskar.)
ऐसे पहुंचे सारनी
इटारसी-नागपुर रेलमार्ग के घोड़ाडोंगरी रेल्वे स्टेशन से 18 किमी की दूर
भोपाल-नागपुर राष्ट्रीय राज्यमार्ग-69 पर बरेठा ग्राम से 32 किमी की दूरी
जिला मुख्यालय बैतूल से राज्यमार्ग-43 द्वारा 51 किमी की दूरी
छिंदवाड़ा से राज्यमार्ग-19बी द्वारा 105 किमी की दूरी
Comments