ज़िंदगी को आसान बनाने का नज़रिया है ‘सखा’
- Byline
- Jan 15, 2019
- 4 min read
डेढ़ घण्टे की इस फ़िल्म की प्रोडक्शन प्रोसेस काफी दिलचस्प है। ये फ़िल्म इंदौर के लोहा मंडी में पूरे देढ़ साल का समय बिताते हुए शूट की गई। इसे डायरेक्ट किया है यंग प्रांशु श्रीवास्तव ने। फ़िल्म सखा दो लोगों के सफर की कहानी है जो आम से भी बहुत आम लोग है।

Sheetal Atkade . Byline Bhopal (mobile#7067730336)
हमारे बढ़े - बूढ़े हमें कई सारी सीख देकर गए है जैसे कि कर्म किए जा फल की इच्छा मत कर। ऐसी और भी कई कहावतें और मुहावरे हम सभी जानते है। बचपन से सुनते आए हैं तो रट से भी गए है लेकिन सब कुछ जानने के बावजुद भी हम इन्हें अमल में नहीं लाते। ये छोटी-छोटी सी ही बातें होती है जिन्हें अगर हम अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बना ले तो ये हमारी लाइफ को बेहद आसान बना दें। लेकिन ऐसा होता कहा है! लाइफ को एेसे ही ईजी बनाने का ऐसा ही नज़रिया लेकर आ रही है फीचर फिल्म ‘सखा’ ।
लोहा मंडी में पली-बढ़ी चिड़िया के सपनों की उड़ान :
डेढ़ घण्टे की इस फ़िल्म की प्रोडक्शन प्रोसेस काफी दिलचस्प है। ये फ़िल्म इंदौर के लोहा मंडी में पूरे देढ़ साल का समय बिताते हुए शूट की गई। इसे डायरेक्ट किया है यंग प्रांशु श्रीवास्तव ने। फ़िल्म सखा दो लोगों के सफर की कहानी है जो आम से भी बहुत आम लोग है। ये कहानी रियल लाइफ बेस्ड है। इस फ़िल्म के लीड है चिड़िया और बबुआ। फ़िल्म की कहानी इन दो कैरेक्टर्स के इर्द-गिर्द घूमती नज़र आती है। चिड़िया जिसके बड़े सपने है लेकिन जिस माहौल में वो रही है वहां उसके मन को उसकी आकांक्षाओं को कोई नहीं समझता। वहीं बबुआ जो कि बोल नहीं सकता , वो चिड़िया के सपनों को उड़ान देने में उसकी मदद करता है, उसे पूरी तरह समझता है,वीमेन एम्पावरमेंट को दर्शाते हुए, इस फ़िल्म में बबुआ की सोच को दर्शाया गया है। आखिर कैसे उसी माहौल में रहकर बबुआ ये कर पाता है ये फ़िल्म उसी सोच पर आधारित है।
डेढ़ घण्टे की फ़िल्म बनाने में लगे डेढ़ साल :
डायरेक्टर प्रांशु का कहना है कि मैं अपनी इंजीनियरिंग के दौरान पूरे 4 साल इंदौर में बिताए है। वहां के लोहा मंडी में मेरे दोस्त का गोडाऊन हुआ करता था इसीलिए वहां अक्सर इस दौरान आना जाना होता रहता था। यही वजह है कि मैं लोहा मंडी के मजदूरों की लाइफस्टाइल को बेहतर ढंग से समझ पाया। इस फ़िल्म को बनानें में मुझे पूरे डेढ़ साल लग गए। कारण मेन पावर की कमी। जब मैंने इस फ़िल्म की शुरुआत की तब मुझे मिलाकर मेरी टीम में सिर्फ 3 लोग ही थे जो बढ़ते बढ़ते 18 हो गए। जैसे कि आपने देखा होगा कि फिल्मों की कहानियां अक्सर रियल लाइफ के एक्सपेरिएंस से इन्सपायर होकर बनाई जाती है मेरी फिल्म सखा भी मेरी लाइफ का ही हिस्सा है। इस स्क्रिप्ट को तैयार करने में मुझे एक महीने का समय लगा।
अनुराग कश्यप ने किया मोटिवेट
ये उस वक़्त की बात है जब मैं फ़िल्म बॉम्बे वेलवेट में इंटर्न के तौर पर काम कर रहा था। मुझे प्रोडक्शन मैनेजमेंट का काम सौंपा गया लेकिन मैं खुद को फ़िल्म बनाना चाहता था। जब मैंने अपने मन की हलचल का जिक्र अनुराग सर से किया तो उन्होंने बड़ी सहजता के साथ मुझसे कहा “ कौन रोक रहा है तुम्हें ?? जाओ उठाओ कैमरा और बनाओ अपनी खुद की फ़िल्म। बस वो मेरे लिए किक था। उनके बाद मैंने अपनी राह खुद बनाई। अपना बोरिया- बिस्तर बांधकर में निकल पड़ा वापस इंदौर की ओर। इस बीच खुद को निखारने के बहुत मौका मिला।
फ़िल्म के लीड रोल की तैयारी
इस फ़िल्म के लीड रोल में चिड़िया की भूमिका एमपीएसडी की स्टूडेंट रह चुकी प्रेक्षा निभा रही है। वही सेकंड लीड बबुआ के रोल प्रांशु श्रीवास्तव ने खुद निभाया है। कैरेक्टर को बैलेंस करने के लिए उन्होंने अपना 10 किलों वजन घटाया साथ ही। प्रांशु बताते है कि प्रोफेशनल मेकअप के लिए उनके पास कोई बजट नहीं था इसीलिए वो लोहा मंडी में पड़ी धूल से ही अपने ऊपर उड़ेल देते थे।
मध्यप्रदेश में बने खुद की फ़िल्म इंडस्ट्री
फ़िल्म बनने में वक़्त इसीलिए लगा क्योंकि कोई भी इंडिपेंडेंट फ़िल्म मेकर्स पर भरोसा नहीं करता। आप ही हो खुद के लिए सब कुछ। अगर एम पी में भी खुद की फ़िल्म इंडस्ट्री होती जो हम जैसे इंडिपेंडेंट फ़िल्म मेकर्स को काफी मदद मिलती। हमारे यहां बहुत टैलेंट भरा हुआ है जरूरत है इसीलिए एक प्लेटफार्म देने की। ये बेहद जरूरी है।
फ़िल्म सखा की खासियत
इस फ़िल्म की खासियत है इसकी स्टोरी लाइन जो हम में से हर किसी को मोटिवेट करती है और जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए भी राह दिखाती है। डेढ़ साल के अंतराल में बनी इस फ़िल्म में बिग-बॉस फेम दीपक ठाकुर ने एक सिचुएशनल सॉन्ग गाया है। फ़िल्म की लीड चिड़िया के सपनों को साकार करने में सेकंड लीड बबुआ की भूमिका। बबुआ जो बोल नहीं सकता इसके बावजूद वो चिड़िया की भावनाओं को समझता है। वो ये सब कैसे समझ पाया ये राज फ़िल्म के क्लाइमेक्स में खुलता है। ये एक आर्ट फ़िल्म है जो पोएट्रिक फ़िल्म है। ये फ़िल्म बबुआ की थिंकिंग को रिप्रजेंट करती है।
सखा की टीम
एक्टर : प्रेक्षा, प्रांशु, राघवराज, आदित्य गौर,सलीम राज, सुमित राज,अभिषेक गौर,राम दुबे, नीलेश सुडेले,शैल,कुलगौरव शीतल,निखिल,शांतनु और अंकित
सिंगर : दीपक ठाकुर
म्यूजिक : निखिल शांतनु
लिरिक्स : कुलगौरव शीतल
प्रोडक्शन : ब्रैंड आइकॉन स्टुडिओ
डायरेक्टर : प्रांशु श्रीवास्तव
ये शार्ट फ़िल्म जिन्हें सराहा गया
डिजायर ( 2016)
साइकोलॉजिकल बेस्ड फ़िल्म
- चित्र भारती फ़िल्म फेस्टिवल में ऑल इंडिया लेवल पर बेस्ट शॉर्ट फिल्म का अवार्ड बॉलीवुड डायरेक्टर मधुर भंडारकर के हाथों हासिल किया।
स्थित प्रज्ञ ( 2017 )
इंडिया फ़िल्म प्रॉजेक्ट फ़िल्म फेस्टिवल में एशिया लेवल पर सबको थीम दी गई थी “ एवरी थिंग इस कनेक्टेड” इसमें “ भगवतगीता “ पर आधारित फिल्म तैयार की । 7 मिनिट की इस फ़िल्म को तैयार करने के लिए 50 घण्टे की समय अवधि दी गई।
मिडनाइट एट 2
( मई - 2017) इस फ़िल्म को कान्स फ़िल्म फेस्टिवल में जगह मिली। इस फ़िल्म में प्रांशु श्रीवास्तव असिस्टेंट डायरेक्टर रहे।
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