मां ताप्ती और श्रीराम का बारह ज्योतिर्लिंग धाम
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- Nov 9, 2019
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Amit Pathe Pawar | Byline Betul | Mobile# 8130877024
श्री राम। वह नाम जो सुबह की "राम-राम' में भी है और जीवन की अंतिम यात्रा के "राम नाम सत्य...' में भी है। ऐसे मर्यादा पुरुषोत्तम जो आज भी रामायण के एक-एक दोहे-चौपाइयों के साथ, अपने भक्तों के मन में भी बसते हैं। जिन्होंने सनातन काल में आज के भारत के उत्तर से दक्षिण तक में अपना वनवास काटा। उनके पावन पग इस धरा पर जहां-जहां पड़े वो स्थान स्वयं तीर्थ हो गए। कहा जाता है कि भारत के कण-कण में श्री राम बसते हैं। उन स्थानों पर जहां से श्री राम, माता सीता और अनुज श्री लक्ष्मण गुजरे, भक्तों ने उन स्थानों को परम पावन मानकर अपनी आस्था व भक्ति से तीर्थ बना दिया। सदियों और पीढ़ियों से ऐसे स्थानों पर श्री राम की भक्ति की पावन परंपरा अनवरत जारी है। रामत्व की ऐसी ही सुधा व सुगंध मप्र के बैतूल जिले में बारहलिंग (बारह ज्योतिर्लिंग नामक स्थान पर आज भी मौजूद है।

बाहरलिंग में ही श्रीराम ने मां ताप्ती के सानिध्य में शिव की थी स्तुति
सतपुड़ा की कंदराओं में आदिकाल और युगों-युगों से अविरल बह रही मां ताप्ती, जिन्हें वेद-पुराणों में ऋषि-मुनियों ने आदिगंगे कहा है। ऐसी मां ताप्ती को भी भगवान राम के श्री चरणों का सानिध्य प्राप्त हुआ। तभी तो वे अयोध्या से पंचवटी (त्रयंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग, नासिक, महाराष्ट्र) से होते हुए दक्षिण की ओर अपने वनवास की यात्रा में आगे बढ़ पाए होंगे। प्रकृतिप्रेमी और नदियों को मां मानने की सनातन संस्कृति के आदिपुरुष श्रीराम ने मां ताप्ती के प्राकृतिक सौन्दर्य और उनकी महिमा से प्रभावित होकर यहां जरूर कुछ समय बिताया होगा। मां ताप्ती तो सूर्यपुत्री हैं और श्रीराम सूर्यवंश के राजा, इसलिए यह संयोग और विशेष हो जाता है। माना जाता है बाहरलिंग ही वह स्थान है जहां भगवान श्रीराम ने मां ताप्ती के सानिध्य में शिव की स्तुति की। युगों से ऐसी मान्यता है बारहलिंग में श्रीराम ने माता सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ विश्राम किया। यहां उन्होंने ताप्ती किनारे द्वादश ज्योतिर्लिंग के पिंड बनाकर मां ताप्ती के जल से उनका अभिषेक किया।
मप्र की पूर्व सरकार ने प्रदेश में श्री राम पथ के लिए चित्रकूट से लेकर पंचवटी तक जाने वाले मार्ग में मध्यप्रदेश की सीमाओं को चिन्हित करने का वादा किया था। मौजूदा प्रदेश सरकार ने भी श्रीराम पथ परियोजना को मूर्त रूप देने का वादा किया हुआ है। ऐसे में प्रदेश भर से श्रीराम पथ को लेकर मान्यताओं, किवदंतियों और परंपराओं के आधार पर रामपथ की अपनी-अपनी व्याख्याएं की जाने लगी हैं। ऐसे में सतपुड़ांचल को रामपथ से जोड़कर देखा जाता है। आखिरकार बिना सतपुड़ा और मां ताप्ती को पार किए दक्षिण की ओर कैसे बढ़ा जा सकता है। ताप्ती के किनारे से ही तो दक्षिण का द्वार खुलता है।

बैतूल जिले के हर राम भक्त के मन में सूर्यपुत्री ताप्ती के किनारे बने बारहलिंग के लिए बड़ी आस्था है। उनका मानना है कि स्वयं मां ताप्ती ने पहाड़ों को चीरकर अपने लिए जो मार्ग बनाया है उस मार्ग में बीच सदियों से पड़े पत्थरों पर भगवान श्री राम द्वारा बनाए बारह शिवलिंग हैं। यह ऐसा एक मात्र स्थान माना जाता है जहां श्रीराम काल के 12 शिवलिंग पाए जाते हैं। हालांकि, हाल के वर्षों में कुछ स्थानीय संतों और लोगों ने बारहलिंग में ही नए 12 शिवलिंग बनाने के प्रयास किए लेकिन बताया जाता है कि मां ताप्ती ने बारिश में उन्हें मूर्त रूप में नहीं रहने दिया। दक्खन और विंध्य प्लेट के संगम पर सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला की तलहटी से लगकर मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र एवं गुजरात में युगों से बहती चली आ रही हैं, हमारी ताप्ती माँं। कहा जाता है कि इनके जल में हड्डी एवं बाल तक घुल मिल जाते हैं। इसमें स्नान करने से कुष्ठ एवं चर्म रोग से मुक्ति मिलती है।

कार्तिक माह में लगता है मेला
श्री राम और मां ताप्ती से जुड़ी दंतकथाओं और लोकमान्यताओं के अनुसार कार्तिक माह की पूर्णिमा को ही भगवान श्रीराम ने ताप्ती नदी के किनारे बारह शिवलिंग की स्थापना कर उनका पूजन किया था। कहा जाता है कि इसी स्थान पर श्रीराम ने रात्रि विश्राम किया था। इसी कारण आसपास की जनजाति के लोग यहां पर तीन दिन की तीर्थ यात्रा के लिए आकर रात्रि मुकाम करते हैै।

सीता मां को अति प्रिय था - सीताफल कथाओं एवं पुराणों के अनुसार श्रीराम ने वनों में उगने वाले फलों में से एक को जब माता सीता को दिया तो उन्होंने इसका नाम जानना चाहा। तब भगवान श्रीराम ने कहा कि हे सीते यदि यह फल तुम्हें अति प्रिय है तो आज से यह सीताफल कहलाएगा। आज बैतूल जिले के जंगलों एवं आसपास की आबादी वाले क्षेत्रों में सर्वाधिक संख्या में सीताफल पाया जाता है। बारहलिंग पर आज भी सीता स्नानागार एवं विलुप्त अवस्था में भगवान श्री राम द्वारा पत्थरों पर ऊंकेरे गए बारह शिवलिंग स्पष्ट दिखाई पड़ते है।
प्रतिवर्ष मकर संक्राति पर हजारों की संख्या में दूर-दराज और अन्य जिलों एवं प्रदेशों से श्रद्घालु यहां स्नान कर उस जल से मां ताप्ती के पिता श्री सूर्यनारायण एवं भाई श्री शनिदेव को जल अपर्ण कर उनकी पूजा आराधना करते हैं। मकर संक्राति के अवसर पर ताप्ती में स्नान व ध्यान को ज्योतिषी शास्त्र एवं पंडित तथा जानकार विशेष शुभ अवसर मानते हैं। इस दिन आपस में एक-दूसरे के घोर विरोधी पिता एवं पुत्र (सूर्य व शनि) दोनों मां ताप्ती के जल में स्नान और ध्यान से प्रसन्न होकर इच्छानुसार मनोकामना पूर्ण करते हैं। पीढ़ियों से हमारा लालन-पालन व पोषण करने वाली सूर्यपुत्री आदि गंगा मां ताप्ती से जुड़े तीर्थ स्थल, जंगल और प्रकृति की रक्षा करना हमारा धर्म है। आस्था एवं संस्कृति में मां ताप्ती के अस्तित्व को संरक्षित और संवर्धित कर उसे अगली पीढ़ी को सौंपना हमारा महत्वपूर्ण कर्तव्य है।
(Writer Amit is a Journalist and Graphic Designer. Worked with The Times of India, Navbharat Times, Patrika & DainikBhaskar.)
साभारः वरिष्ठ पत्रकार श्री रामकिशोर पवांर (बैतूल)
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