।। नमो मां ताप्ती आदिगंगे ।।
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- Jul 9, 2019
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मां गंगा में स्नान, नर्मदा के ध्यान व यमुुना के आचमन से जो पुण्य लाभ मिलता है, वह मां ताप्ती के स्मरण मात्र से मिल जाता है
Amit Pathe Pawar . Byline Bhopal
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मां ताप्ती (तापी) के उदगम् के कारण ही इस नगर का नाम मुलतापी पड़ा। मुलतापी (मुलताई) को सांस्कृतिक नगरी व पवित्र नगरी कहलाने का श्रेय ताप्ती नदी के कारण मिला है। भारत के सभी तीर्थों में ताप्ती उदगम् का अपना अलग महत्व है। नदियों किनारे संस्कृति का जन्म होता है और नदियों से ही सभ्यता फलती-फूलती हैं। नदियों से लोगों का हमेशा लगाव रहा हैं, प्रकृति की अनुकूलता के कारण लोग नदियों के किनारे आकर्षित हुए हैं। नदियां सबको जीवन प्रदान करती है, इसलिए नदियों को अमृतदायिनी व जीवनदायिनी माना जाता है। मुलताई में ताप्ती जी का महत्व समझते हुए, यहां पर प्राचीन समय में भारत के ऋषि-मुनि और मनीषियों ने इसे अपनी कर्मस्थली बनाया। यहां रहकर जप-तप किया।

धर्म परंपरा के अनुसारकृत युग में ब्रम्हाजी ने, नेत्रा युग में दशरथ नंदन श्री राम ने, द्वापर युग में श्री कृष्ण ने ताप्ती माँ की सेवा की।
वहीं, ताप्ती जी की आराधना करके अपने को श्राप से मुक्ति पाई। मां ताप्ती को को सूर्य पुत्री होने का सौभाग्य मिला। यमराज, शनिदेव एवं मां यमुना उनके भाई-बहन होने के कारण इनका बहुत ही महत्व है। मोक्ष प्रदान करने वाली सूर्य पुत्री मां ताप्ती की आयु पृथ्वी की आयु के बराबर मानी जाती है।
दक्खन और विंध्य प्लेट के संगम पर सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला की तलहटी से लगकर मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र एवं गुजरात में युगो से बहती चली आ रही हैं, हमारी ताप्ती माँं। इनके जल में हड्डी एवं बाल तक घुल मिल जाते हैं। इसमें स्नान करने से कुष्ठ एवं चर्म रोग से मुक्ति मिलती है। उनकी महिमा आम जनता तक पहुंचे इसी आशा और विश्वास के साथ हमारा यह छोटा सा प्रयास जिससे हम मां ताप्ती के महत्व को जाने और पीढ़ियों से हमारा लालन, पालन पोषण करने वाली सूर्यपुत्री आदि गंगा मां ताप्ती से जुड़े तीर्थ स्थल, जंगल, भूगर्भ, पर्वत, जैव विविधता, कृषि, जल, गुणात्मकता, नदी, परंपरा, आस्था एंव संस्कृति से हम परिचित हो सकें,यही परिचय माँ ताप्ती के संरक्षण और संवर्धन में आने वाले समय में महत्त्वपूर्ण होगा।
भारत की सबसे लम्बी नदियों में से एक है ताप्ती का सफर
सूर्यपुत्री मां ताप्ती भारत की पश्चिम दिशा में बहने वाली प्रमुख दो नदियों में से एक है। यह नाम ताप यानी उष्ण गर्मी से उत्पन्न हुआ है। वैसे भी ताप्ती ताप-पाप-श्राप और त्रास को हरने वाली आदीगंगा कही जाती है। भगवान सूर्यनारायण ने स्वंय के ताप को कम करने के लिए ताप्ती को धरती पर भेजा था। यह सतपुड़ा पठार पर स्थित मुलताई के तालाब से उत्पन्न हुई है लेकिन इसका मुख्य जलस्त्रोत मुलताई के उत्तर में 21 अंक्षाश 48 अक्षंाश पूर्व में 78 अंक्षाश एवं 48 अंक्षाश में स्थित 790 मीटर ऊंची पहाड़ी है जिसे प्राचीनकाल में ऋषिगिरी पर्वत कहा जाता था जो बाद में नारद टेकड़ी कहा जाने लगा। उस स्थान पर स्वंय ऋषि नारद ने घोर तपस्या की थी तभी उन्हें ताप्ती पुराण चोरी करने के बाद उत्पन्न कोढ़ से मुक्ति का मार्ग ताप्ती नदी नदी में स्नान का महत्व बताया गया था। मुलताई का नारद कुण्ड वही स्थान है जहां पर नारद को स्नान के बाद कोढ़ से मुक्ति मिली थी। ताप्ती नदी सतपुड़ा की पहाड़ियों एवं चिखलदरा की घाटियों को चीरती हुई बहती है। 201 किलोमीटर अपने मुख्य जलस्त्रोत से बहने के बाद ताप्ती पूर्वी निमाड़ में पहुंचती है। पूर्वी निमाड़ में भी 48 किलोमीटर सकरी घाटियों का सीना चीरती ताप्ती 242 किलोमीटर का सकरा रास्ता खानदेश का तय करने के बाद 129 किलोमीटर पहाड़ी जंगली रास्तो से कच्छ क्षेत्र में प्रवेश करती है। लगभग 701 किलोमीटर लम्बी ताप्ती नदी में सैकड़ों कुण्ड एवं जल प्रताप के साथ डोह है जिसकी लम्बी खाट में बुनी जाने वाली रस्सी को डालने के बाद भी नापी नहीं जा सकी है। मुलताई नगर स्थित तालाब से निकल कर समीप के गौ मुख से एक सूक्ष्म धार के रूप में बहती हुई गुजरात राज्य के सूरत के पास अरब सागर में समाहित हो जाती है।
श्री ताप्ती अवतरण के बाद ही सौर मंडल का निर्माण हुआ। शास्त्रों में उल्लेख मिलता हैं कि यदि भूलवश अनजाने से किसी मृत देह की हड्डी ताप्ती जल में प्रवाहित हो जाती हैं तो उस मृत आत्मा को मुक्ति मिल जाती हैं। कहते हैं कि ताप्ती नदी में बहते जल के बिना किसी विधि विधान के यदि कोई भी व्यक्ति मृत अतृप्त आत्मा को आमंत्रित करके उसे अपने दोनो हाथो में जल लेकर उसकी शांति और तृप्ति का संकल्प लेकर यदि उसे बहते जल में प्रवाहित कर देता हैं तो मृत व्यक्ति की आत्मा को मुक्ति मिल जाती हैं ।
नारद जी को ताप्ती से मिली श्राप से मुक्ति, यहां की तपस्या
नारद जी को ब्रह्मा जी का मानस पुत्र माना जाता है। नारद जी को तीनों लोकों में घटित घटनाओं का ज्ञान होने के कारण वे सभी लोकों में समान रूप से पूजनीय है। वे देवता, दानव व मानव तीनों में पूजनीय व लोकप्रिय हैं। एक किवंदंती के अनुसार नारद जी द्वारा जब गंगा जी का मान बढ़ाने के लिए पृथ्वी लोक से सभी ताप्ती पुराण वापस बुलाने के प्रयोजन में मुख्य भूमिका निभायी, तो मां ताप्ती के श्राप के कारण उन्हें गलित कोढ़ हो गया। वे देवादिदेव ब्रह्मा, विष्णु व महेश की शरण में गये तो उन्होंने इसकी मुक्ति का उपाय यह बताया कि आपको श्राप से केवल सूर्यपुत्री ताप्ती ही मुक्त कर सकती है। जब नारदजी ने मां ताप्ती की आराधना की। तब मां ताप्ती ने कहा कि आप यदि मेरे जल में स्नान करेंगे तो आप का कोढ़ दूर हो जायेगा। तब नारद जी ने मां ताप्ती उदगम् के किनारे ध्यान व स्नान किया। मुलतापी में जहां नारदजी ने तपस्या की थी, वह स्थान आज भी नारद टेकड़ी के नाम से जाना जाता है।
माँ ताप्ती की उत्पत्ति
स्कंद पुराणांतर्गत ताप्ती महात्म में ताप्ती उत्पत्ति का वर्णन किया गया है, जिसके अनुसार जब ब्रम्हदेव ने सृष्टि रचना प्रारभ की तब सम्पूर्ण जगत अंधकारमय था। अंधकार को दूर करने के लिए ब्रम्ह देव ने सूर्य नारायण रूपी मानस पुत्र को उत्पन्न किया। जिससे सम्पूर्ण जगत प्रकाशमय हुआ। पृथ्वी पर ताप बढ़ने लगा जिसके कारण सूर्यनारायण के भूमध्य से कुछ पसीने (स्वेद) की बूंदे गिरी और ताप्ती का पृथ्वी का अवतरण हुआ।
पद्य कल्प में प्रथम आषाढ़ शुक्ल सप्तमी रविवार युक्त पद्यक पर्व (आषाढ़ शुक्ल सप्तमी के दिन रविवार हो तो उसे पद्यक पर्व कहते है) में सूर्यनारायण के ताप अर्थात पसीने से उत्पन्न हुई। आषाढ़ शुक्ल सप्तमी के दिन ताप्ती का जन्मोत्सव बड़े उत्साह में मनाया जाता है। सूर्य के धर्म से उत्पन्न होने के कारण इनका नाम ताप्ती पड़ा एंव सृष्टि की प्रथम होने का महत्व ताप्ती नदी को मिला। जल के रूप में प्रकट होने से संपूर्ण भूलोक का संताप दूर किया, इस कारण सूर्यपुत्री कहलाती है।
मां ताप्ती परिवार
शास्त्र के अनुसार सूर्य देव की पत्नियां संध्या, राज्ञी, प्रभा, छाया मानी गयीं हैं। संध्या द्वारा उत्पन्न - शनि, ताप्ती, यमराज, यमुना, भद्रा, सावित्री हैं एवं छाया द्वारा उत्पन्न - श्राद्ध देव, मनु, व्यतिपान, कुलिका, अर्थायाय आदि हैं। मां ताप्ती का विवाह संवरण नाम के राजा के साथ हुआ है। यह राजा सोम वंश के थे इनसे मां ताप्ती को कुरु नाम का पुत्र हुआ। इस कुरु ने माता से वर मांगा कि उसकी कीर्ति संसार में अखंडित रहे तब ताप्ती ने उसे वर दिया जिससे कुरु से कुरुक्षेत्र हुआ जहां पर महाभारत का विराट युद्ध हुआ।
मां ताप्ती की आयु
श्री आदिगंगा ताप्ती वेद-पुराणो में प्रसिद्ध है इनकी आयु 21 कल्प पूर्व की है। कल्प की व्याख्या ऐसी है की ब्रह्मा जिन्होंने सृष्टि की रचना की है उनका एक दिन एक कल्प कहलाता है । उनका प्रमाण यह है कि चार युग कृत, त्रेता, द्वापर एवं कलयुग जब एक हजार बार परिवर्तित होते हैं तब ब्रम्हा का एक दिन होता है। जिसकी वर्ष संख्या 4,32,00,00,000 (चार अरब बत्तीस करोड़) है। ऐसे इक्कीस कल्प मां ताप्ती को अवतरित होने को हुए है। ताप्ती पृथ्वी पर अवतरित होने वाली प्रथम नदी है। जब पृथ्वी पर गंगा, यमुना, सरयु, नर्मदा, गोमती, गोदावरी, सिंधु, चन्द्रभागा इत्यादि नदी का उद्भव नहीं हुआ था, इसलिये इसे आदि गंगा कहा जाता है।
तापी नदी पर सूर्यकुण्ड, ताप्ती कुण्ड, धर्म कुण्ड, पाप कुण्ड, नारद कुण्ड, शनि कुण्ड, नागा बाबा कुण्ड यह सात कुण्ड बने हुए है, जिनकी अपनी अलग-अलग धार्मिक कहानियां प्रचलित है।
(Amit is a Journalist and Graphic Designer. Worked with
The Times of India, Navbharat Times, Patrika & Dainik Bhaskar.)
साभारः संजय पठाड़े "शेष', मां ताप्ती एंड्रॉइड एप व अन्य
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